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मदनपराजय
सोलह कषाय, नौ नोकषाय, और तीन मिथ्यात्वनामक राजाओं के परिवार के साथ दुर्जय और बलवान् मोह भी आ डटा । वह मोहमहल, जिसने सपरिकर इन्द्र, महादेव, सूर्य, चन्द्र, कृष्ण और ब्रह्माको पराजित किया और जिससे महान् हिमालय भी भीत रहता है, प्राते समय इस प्रकार मालूम हुआ जैसे साक्षात् यमराज प्रा रहा हो !
ज्यों ही महाराज कामदेव ने मोहको सामने आते हुए देखा, उसने बड़े उल्लासके साथ मोहका पट्टबन्ध किया और अपने शेष सम्पूर्ण श्राभरण उसे दे डाले। इसके पश्चात् कामदेव उससे कहने लगा - हे मोहमल्ल, अब तुम्हें हो इस सम्पूर्ण राज्यकी रक्षा करनी है। क्योंकि सेनाधिपति तुम्हीं हो और इस संग्राम में ऐसा कोई नहीं है जो तुम्हारा सामना कर सके । वह कहता गया-
"मोह, जिस प्रकार चन्द्रके बिना रात्रि सुशोभित नहीं होती, कमलोंके बिना नदी सुशोभित नहीं होती, गन्धके विना फूल सुन्दय नहीं होता, दांतोंके विना हाथी सुशोभित नहीं होता, पण्डित समूहके विना सभा अलंकृत नहीं होती और किरणोंके बिना सूर्य सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार अद्भुत पराक्रमी तुम्हारे बिना हमारा सैन्य भी सुशोभित नहीं हो सकता है। इसलिए मुझे विश्वास है कि मैं अत्र जिनेन्द्रको जरूर ही जीत लूंगा ।"
कामदेव और मोहकी इस प्रकारकी बात चल ही रही थो कि इतने में अपने मदके भारसे अन्धे माठ मदरूपी हाथियोंके समराङ्गरण में घण्टे बजने लगे और अत्यन्त वेगवान्, उन्नत, दुर्द्धर, चपल और सबल मनरूपी अश्वसमूह भी उपस्थित हो गया। इस तरह कामदेव सैन्यमें अनेक क्षत्रिय सुभट-समूह सम्मिलित हो गये और इस कारण उसमें निराली शान आ गयी ।