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________________ ७४ ] मराज "देखो, सेवा-वृत्तिसे धन कमाने वालोंने क्या नहीं किया ? सब कुछ किया । अरे, इन भूखोंने, और तो क्या, शरीरको स्वतन्त्रता भी बेच डाली !" अथ च, ___विज्ञान कहते हैं कि ये पाँच प्राणी जीवित होने पर भो मृतकवत् हैं -दरिद्रो, व्याधि-ग्रस्त मूर्ख, प्रवासी और नित्य सेवा करने वाला ।" तथा, ___ "वनवास उत्तम है, भिक्षा मांगना उत्तम है। भार होकर जोविका चलाना उत्तम है। किन्तु विवेकी पुरुषोंका यह कर्तव्य नहीं है कि वे सेवा-वृत्तिसे द्रव्य जपार्जित करें।" और ___"सेवा करनेवालेको छोड़कर अन्य कोई ऐसा मूर्ख नहीं है जो उन्नति के लिए प्रणाम करता है, जीवन के लिए प्राणों सफ का उत्सर्ग करता है और सुख के लिए दुःख उठाता है ।" इसी प्रकार "यदि सेवक राजाओंको विविधमुख भाव-भङ्गिमाको नहीं समझता है, तो वह कभी स्निग्ध भाबमे काम करनेपर भी राजाका अप्रीति-पात्र बना रहता है और कभी राजाका अपकार करनेपर भी स्नेह-पात्र माना जाता है। इस तरह यह सेवा-धर्म इतना दुर्बोध है कि पहुँचे हुए योगी भी इसे ठीक तरहसे नहीं समझ पाते।" तथा "सेवक यदि मौन रहता है तो लोग उसे गूगा कहते हैं । यदि बह बात करने में चतुर है तो उसे बकवादी और असम्बद्ध प्रलापी कहा जाता है। यदि वह स्वामीके निकटमें रहता है तो घृष्ट कहलाता है और यदि दूर रहता है तो प्रालसी कहा जाता है। यदि क्षमाशील है तो भीरु कहलाता है और अनुचित बातको सहन नहीं करता है तो कुलोन नहीं कहलाता है। इस प्रकार सेवा-धर्म इतना दुर्बोध है कि पहुंचे हुए साधु भी इसे विधिवत् नहीं समझ सके हैं ।" .
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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