________________
७२ ।
मदनपराजय
तथा च
"प्रणमत्युग्नतिहेतोर्जीवितहेतोविमुञ्चति प्राणान् ।
दुःखीयति सुखहेतोः को मूर्खः सेवकादपरः ॥३८॥" अन्यत्र"भावैः स्निग्धैरुपकृतमपि द्वेषितामेति कश्चित् साध्यादन्यरपकृतमपि प्रीतिमेवोपयाति । दुर्ग्राह्यत्वान्नृपतिवचसां नैकभावाश्रयाणां
सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥३६॥" तथा च"मौनान्मूक: प्रवचनपटुर्वातुलो जल्पको वा, धृष्टः पार्वे भवति च तथा दूरतश्च प्रमादी । क्षान्त्या भीर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजात:, सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥४०॥"
* ८ राग और द्वेषको जिनराजके स्थानपर पहुँचने के लिये प्रत्यन्त विषम मार्गसे जाना पड़ा और वहाँ पहुँचते-पहुँचते वे अत्यन्त क्षीण और निष्प्रभ हो गये। अंतमें ये संज्वलनके पास पहुंचे औस कहने लगे-मित्र संज्वलन, तुम हम लोगोंको किसी प्रकार जिनराजके पास पहुंचा दो।
___ संज्वलन कहने लगा- तुम लोग जिनराजके पास किसलिए पाए हो?
राग-द्वेष कहने लगे-अपने स्वामीकी आज्ञापालन करने के लिए हम लोग यहां पाए हैं।
संज्वलन फिर कहने लगा-पहले यह तो बताओ, तुमने अपनी वीर-वृत्ति छोड़कर यह दूत-कार्य क्यों अङ्गीकार किया ?
१