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________________ ..] मदनपराजय "संसारमें ऐसा कोई काम नहीं, जो धनसे सिद्ध न हो सके । इसलिए बुद्धिमान्को चाहिए कि वह प्रयत्नपूर्वक एक धनको ही संचित करे। •जिसके धन है, उसके मित्र हैं। जिसके धन है, उसके वधु हैं। जिसके धन है, वह लोकमें पुरुष है; और जिसके धन है, वही जीवित है। ___ संसारमें धनी पुरुषोंके लिए पराया भी आत्मीय जन-जैसा प्रतीत होता है । और दरिद्रोंके लिए अपना प्रादमी भी तत्काल दुर्जन-जसा मालूम देता है ।" और "जो अपूज्य भी पूजा जाता है, अगम्य भी गम्य होता है और अवन्ध भी वन्दित होता है-वह सब धनका प्रभाव है । जैसे पर्वतोंसे निकली हुई नदियोंसे अनेक काम लिए जाते हैं उसी प्रकार सब तरफसे सुरक्षित वर्धमान धनसे भी अनेक उपयोगी कार्य निकाले जाते हैं। घनसे पेट भरा जाता है और धनसे ही इन्द्रियोंके सब काम निकलते हैं । इसीलिए धन सबका साधन कहा गया है।" इस प्रकार शिल्पकारकी बात सुनकर अन्य साथी कहने लगेमित्र, पापका कहना बिलकुल ठीक है। हमें यही करना चाहिए । यह सोचकर वे चारों साथी देशान्तरके लिए चल पड़े। _ ५ अथ ते चरवारो यावत् गच्छन्ति तावदपराह्न मध्ये भयगुरमरण्यमेकं प्रापुः । अथ तस्मिन्नरण्यमध्ये शिल्पि(ल्प)कारेण तान् प्रति वचनमेतहभिहितम्-प्रहो, एवंविध भयङ्करं स्थानं रात्रिसमये वयं प्राप्ताः। तदेकेको यामो जागरणीयः । अम्पपा घोरण्याघ्राविभयात् किचिद्विघ्नं
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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