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द्वितीय परिच्छेद
[ ५७ अनागतविधाताकी बात सुनकर प्रत्युत्पन्नमति कहने लगाःहो मित्र. अब हमें यहाँसे शीघ्र ही प्रस्थान कर देना चाहिए । पर जब इन दोनोंकी बात यद्भविष्यने सुनो तो वह हंसकर कहने लगाः-'अरे, आप लोग मापसमें क्या छोटी-सी बातपर विचार कर रहे हैं ? यदि मरना ही होगा तो हम अन्यत्र भो चले जावें. मृत्युसे नहीं बच सकते । कहा भी है :
'मनुष्य जिस वस्तुकी रक्षा नहीं करता है वह देवसे रक्षित होकर बची रहती है । इसके विपरीत जिसकी खूब सावधानीसे रक्षा भी को जाय और यदि देवकी अनुकूलता न हो तो वह विनस जातो है। प्रनाथको वनमें छोड़नेपर भी वह जीवित रह जाता है और अनेकों प्रयत्न करनेपर भी चीज घरमें नहीं बच पाती है ।" प्रय च
___“जो भक्तिध्य नहीं है, वह कभी नहीं होता है। और जो भवितव्य है वह होकर हो रहता है। भवितव्यताके न होमेपर हापमें रक्खी हुई चीज भी नष्ट हो जाती है।" और--
"जिस प्रकार गायका बछड़ा हजार गायोंमेंसे अपनी माको पहिचान लेता है। उसी प्रकार पूर्व जन्म में किया गया कर्म कर्साका अनुसरण करता है।"
इसलिए हम भले ही अन्यत्र चले जायें, परन्तु जो होनहार है वह अवश्य होकर रहेगी। एक बात पोर । धीवरोंके कथनको सुनने मात्रसे हमें पिता-पितामह आदिसे उपाजित जलाशय न छोड़ देना चाहिए । इस दृष्टि से मैं तो आपलोगोंके साथ नहीं जाना चाहता।'
यद्भविष्यको इस प्रकारको बात सुनकर वे दोनों साथी कहने लगे:-मित्र यद्भविष्य, यदि आप हमारे साथ नहीं पाते हैं तो इसमें हमलोगोंका कोई अपराध नहीं है। यह कहकर अनागत विधाता मौर प्रत्युत्पभमति नामके मत्स्य दूसरे बलास में चले गये।