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________________ ५६ ] मदनपराजय * ३ किसो स्थानमें कमलोंसे सुशोभित एक जलाशय था । उस जलाशयमें अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य नामके तीन स्थूलकाय नाय रहते थे। इस प्रकार रहते-रहते इन्हें बहुत दिन बीत गये । कुछ दिनोंके पश्चात् उस जलाशयके निकट घूमते-चामते कुछ धीवर पाये । धौवर इस जलाशयको देखकर आपसमें कहने लगे : 'देखो, इस तालाब में कितने अधिक मत्स्य हैं । अतः यह ठीक होगा कि हमलोग यहां सुबह पायें और तालाबके जलको छानकर उन्हें ले जावें ।' साथियोंने भी इस प्रस्तावका समर्थन किया और वे अपने-अपने घर चले गये। अनागतविक्षाताको इन लोगोंकी बात सुनकर ऐसा मालूम हुआ जैसे उसकी छातीमें किसीने वन मार दिया हो। उसने अपने साथी मत्स्योंको बुलाकर कहा:-आप लोग क्या कुछ दिनतक और जोना चाहते हैं ? अनामसविधाताकी बात प्रत्युत्पन्नमतिको बड़ी असंगत-सी मालूम हुई । वह अपने पूर्व साथीसे कहने लगा-मित्र, श्राप वह बात क्यों कह रहे हैं ? अनागतविधाता कहने लगा:- मित्र, मैंने यह बात इसलिए कहो है कि प्राज कुछ धीवर यहाँ आये थे। उन्होंने इस तालाबको देखकर यह कहा कि-"इसमें बहुत मत्स्य हैं। इसलिए हमलोग सुबह यहां ही पावें।" इतना कहकर वे चले गये। वे लोग प्रातः यहाँ अवश्य ही आयेंगे और हमें पकड़कर ले जावेंगे । इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम शीघ्र ही यहाँसे अन्यत्र प्रस्थान कर दें। कहा भो है : "कुलके स्वार्थके लिए एकका त्याग कर देना चाहिए । जनपदको हित-दृष्टिसे प्रामका त्याग कर देना चाहिए और अपनी स्वार्थ-सिद्धिके लिए पृथिवीतककी चिन्ता न करनी चाहिए।" ।
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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