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________________ ४ ] मदनपराजय "अपि स्वल्पतर कार्य यद्भवेत् पृथिवीपतेः । तन्न वाच्यं सभामध्ये प्रोवाचेदं बृहस्पतिः ॥१॥" तथा बो तथोक्तञ्च "षट्कर्णो भिद्यते मन्त्रश्चतुष्कर्णः स्थिरीभवेत् । तस्मात् सर्वप्रयत्लेन षट्कर्णोऽरक्ष एव सः ॥२॥" * २ भय नामका एक प्रसिद्ध तथा मनोहर नगर या । इस नगरका राजा मकरध्वज था। मकरध्वज अपने सफल धनुष-बाणसे मण्डित था और उसके द्वारा इसने इन्द्र, नर, नरेन्द्र, नाग और नागेन्द्र-सबको अपने अधीन कर रखा था। वह अतिशय रूपवान् पा। महान प्रतापी था। दानशील था। विलासी था। रति पौर प्रीति नामकी उसकी दो पत्नियां थीं। इसके प्रधान मन्त्रीका नाम मोह था। मकरध्वज त्रैलोक्य-विजयी था और अपने प्रधान सचिवके सहयोगसे बड़े आरामके साथ राज्यका संचालन करता था । एक दिनकी बात है। मकरध्वज के सभा भवन में शल्य, गारच, दण्ड, कर्म, दोष, प्रारब, विषय, अभिमान, मद, प्रमाद दुष्परिणाम असंयम पीर व्यसन प्रादि समस्त योधा उपस्थित थे। अनेक राजामहाराजा मकरध्वज की उपासनामें व्यस्त थे। इसी समय महाराज मकरध्वजने अपने प्रधान सचिव मोहसे पूछा-मोह, क्या तीनों लोकमैसे कहीं कोई अपूर्व बात का सुनने का समाचार तो तुम्हें नहीं मिला है ? मोहने उत्तर में कहा-महाराज, एक अपूर्व बात अवश्य सुनने में पाई है; पर उसे श्राप एकान्तमें चलकर सुनें । क्योंकि बृहस्पतिनं बतलाया है कि राज-सभामें राजाके लघु कार्यकी भी चर्चा नहीं होनी चाहिए ! कहा भी है : ___ "तीन व्यक्तियों तक पहुंचकर किसी भी गुप्त बातका भेद खुल जाता है । जब तक वह दो व्यक्तियों तक रहती है, सुरक्षित रहती
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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