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________________ ४२ ] मदनपराजय तथा चमातंण्डान्वयजन्मना क्षितिभृता चाण्डालसेवा कृता रामेणा विक्रमेण गहनाः संसेषिताः कन्दराः । भोमायः शशिवंशजेन पवरवैन्यं कृतं रकवत् स्वाऽभाषाप्रतिपालनाय पुरुषः किं कि न चाङ्गी कृतम् ॥२७॥ एवं सखीचचनमार्य रतिरमणी कामं प्रणम्य निर्ग्रन्थमार्गेण निर्गता । तद्ययायथेन्दुरेखा गगनाद्विनिर्गता यथा हि गङ्गा हिममबिनोधरास् । कद्धायथेभात करिणी विनिर्गता रतिस्तथा सा मदनाद्विनिर्गता ॥२८॥ * १८ मकरध्वजके इस प्रकार दारुण वाक्य सुनकर रतिने कहा-नाथ, प्राय ठोक कहते हैं, पर पापको उचित-अनुचितका विवेक नहीं है । कहा भी है : "रेशम कीड़ोंसे बनता है, सुवर्ण पत्थरसे निकलता है, दूब गोरोमसे पैदा होती है, कमल कीचड़से उत्पन्न होता है । चन्द्रमा समुद्रसे जन्म लेता है, नीला कमल गोबरसे प्रकट होता है, अग्नि काठसे निकलती है, मरिण सापके फणसे उत्पन्न होता है, और गोरो. चन गोपित्तसे प्रकट होता है । इस प्रकार मूल्यवान् पदार्थ अपनीअपनी प्रकट विशेषताओंके कारण मूल्यवान् समझे जाते हैं । जन्मसे कोई मूल्यवान् नहीं बनता।" रति काम से कहती है. नाथ, ठीक इसी प्रकार अखिल स्त्रीसृष्टि दूषित नहीं कही आ सकती और इसीलिए मुझे भी प्रापको इस कोटिमें नहीं रखना चाहिए। आप ही बतलाइए, मापको छोड़
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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