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________________ ३२ ] मदनपराजय 7 वनपाल उद्यानको इस प्रकार फूला फला तथा इसकी अकस्मात् उत्पन्न हुई स्वाषवेखकर बसा विस्मित हुआ वह सोचने लगा — कुछ समझ नहीं पा रहा है, क्या मुनियोंके आगमन के प्रभावसे वह उद्यान इस तरह हरा-भरा हो गया है अथवा इस क्षेत्रका कोई कल्याण होने जा रहा है ? वह सोचता है - इस समय सुर्भ इन फलोंको राजाके पास दिखलाने ले जाना चाहिए। इस तरह सोच-विचारके बाद वह उद्यानके विविध फलोंको लेकर उत्सुकता के साथ राजाकी सेवामें जा पहुंचा। 1 राजाके पास पहुँचकर उसने उन्हें प्रणाम किया और असमयमें फले हुए वे सब फल उनके सामने रख दिये। राजा इन फलोंको देखकर आश्चर्यमें पड़ गया । वह वन्दपाल से कहने लगा- अरे वनपाल, यह फल बिना मौसम कहाँसे श्रा गये ? वनपालने कहा- महाराज, मैं ठीक नहीं कह सकता, यह माश्चर्यपूर्ण घटना कैसे घटी ? हां, पांच सौ मुनियोंके संघ सहित कोई मुनिराज प्रपने उद्यानमें अवश्य प्राये है । और मेरा ध्यान है कि उनके आनेके साथ ही उद्यान तरकाल फल और फूलोंसे मनोहर और प्रलंकृत हो गया । * १४ एवं द्वचनमात्रश्रवणात् सिहासनादुत्याय सप्तपदानि तद्दिशि [-] चक्रम्य परमभावेन प्रणामं कृत्वा स राजा सान्तःपुरः सपरिवारो वन्दनार्थं वचाल । श्रथ तद्वासमाकर्ण्य तत्पुरनिवासिनः सर्वे श्रावकजना जिनवस भार्यादिप्रभूताः श्रावकाङ्गनाः परमभक्त्या वन्दनार्थं नियंयुः । ततो मुनिसका सम्प्राप्य त्रिः परीत्य गुरुभक्तिपूर्वकं प्रणम्य सर्वे तत्रोपविविशुः । अथ तत्रके वैराग्यपरां दीला प्रार्थयन्ति स्म । एके धर्ममाकर्णयन्ति स्म । एके गद्यपद्यस्तुतिवचनः स्तुति चक्रिरे । एके तान् मुनीनवलोक्य 'श्रद्य वयं धन्या' एवं
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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