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________________ 1 ! प्रथम परिच्छेद १ ३१ कयं स चाह-भो देव, किमाश्चर्यं कथयामि । केचिन्मुनीश्वरा सुनिशतपंचकसमेता प्रस्मद्धनमागताः । तत्क्षणात् तेषामागमनमात्रेण तद्वनं सहसा फलकुसुमविराजमानं मनोहरं संजातमिति । * १३ कुछ दिनोंके बाद जिनदत्तकी पत्नी जिनदत्ता पानो भरने के लिए उस बावड़ीपर पहुंची। जिनदत्त को देखकर उस मेंढककी पूर्व भवका स्मरण हो आया और वह दोड़कर जिनदत्ता के सामने या उछला। जिनदत्ता मेंढकको उछलकर सामने लाते हुए देख डर गयी और अपने घर के भीतर घुस गयी। इस प्रकार जब जब जिनदत्ता पानी भरनेके लिए उस बावड़ीपर पहुंचती, वह मेंढक उछलकर उसके सामने आता। इस तरह बहुत दिन निकल गये । एक बार सुभद्राचार्य नामके मुनिराज पांच सौ मुनियोंके साथ विहार करते हुए राजगृहके बाहरी उद्यान में आये। उनके आने मात्रसे वह उद्यान इस प्रकार हरा-भरा हो प्राया : " सूखे अशोक, कदम्ब, आम, बकुल और खजूर के वृक्षोंमें शाखाएं फूट आयीं। उनमें लाल-लाल पहलव, सुगन्धित फूल और सुन्दर फल लग आये । सूखे तालाब बावड़ी और कुए पानीसे लहराने लगे। उनमें राजहंस और मोर क्रीड़ा करने तथा कोकिलाएँ पंचम स्वर में काकली सुनाने लगीं । . जो जाति, चम्पक, पारिजात, जपा केतकी, मालती तथा कमल मुरझाये हुए थे वे सब तत्क्षण विकसित हो गये। इनकी सुगन्धि और रसके लोभी मधुकर इनपर मधुर गुञ्जन करने लगे और रस तथा गन्ध-पान में निरत हो गये । गायक भी इधर-उधर श्रुतिमधुर गीत गाने लगे ।"
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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