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________________ २८ ] मदनपराजय सागारधर्मक्रियावर्तमानस्य जिनवत्तस्य कतिपयरहोभिरन्तकालः प्राप्तः ततोऽनन्तरं यावत्सस्य प्राणनिर्गमन कालो वर्तते, तावस्मिन्नवसरे निजललनाद्ध तलावण्यमवलोक्यालयात सन्नविषमवोचत् 1 तद्यथाकिमिह बहुभिरक्त युक्तिशून्यः प्रलाप यमिह पुरुषाणां सर्वदा सेवनीयम् । अभिनयमबलोलासालसं सुन्धरीणां स्सनतरपरिपूर्ण यौवनं वा वनं वा ।।१५।। एषा स्त्रीषु मनोहराऽतिसुगुणा संसारसौख्यप्रवा बारमाधुर्पयुत्ता विलासचतुरा भोक्त न लब्धा मया। देव हि प्रतिफूलतां गतमलं विग जन्म मेऽस्मिन्भवे यत्पूर्व खल दुस्तरं कृतमघं रष्ट मयतद् भवम् ।१६। तथा च असारे खल संसारे सारं शोसाम्बु चन्द्रमाः। चन्दनं मालतीमाला बालाहेलावलोकनम् ॥१७॥ एवं जल्पन महाज्वरसन्तप्ताङ्गः स्वागनास व्याप्तः पञ्चत्वमवाप । तरक्षणात स्वगृहाररावाप्यां ददु सेऽजनि । * १२ किसी प्रदेशमें राजगृह नामका नगर था। उसमें जिनदत्त सेठ नामका एक श्रावक रहता था। जिनदत्त जिनेन्द्र भगवान के चरण-कमलरूपी परम भोक्ष-सुखके रसास्वादमें मत्त मधुकरके समान था । जिनदत्तकी स्त्रीका माम जिनदता था । जिनदत्ताका सौन्दर्य इन्द्राणीके सौन्दर्य से भी अधिक मनोहर पा। यह दोनों प्राणी बड़े पानन्दसे गृहस्थ जीवन बिता रहे थे। एक दिन अचानक जिनदत्तका अन्तकाल मा उपस्थित हुमा और ज्यों ही उसके प्राए
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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