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________________ मदनपराजय "गगनवनधरित्रीचारिणां देहभाजां बलनहननबन्धच्छेवधातेष यत्नम् । इति गत्वातरोगारे पौतु यत् तविह गदितमुम्चश्वेतसो रोमित्यम् ॥" "जिसका प्रयत्न सदैव नभचर, जलचर और थलचर प्राणियोंको पीस डालने में, मार डालने में, बाँध देने में, छेदन करने में और घात करने में रहता है तथा जो व्यक्ति इन प्राणियोंके नाखून, हाथ और नेत्र भादिके भङ्ग करने में कौतुक रखते हैं उनका चिन्तन रौद्र ध्यान कहलाता है ।" तथा "वहनहननबन्धच्छेवनस्ताउनपत्र प्रभृतिभिरिह यस्योपति तोष मनश्च । व्यसनमति सवाऽथे नानुकम्पाकवाधि मुमय इति सवाहानमेवं हि रौद्धम् ॥" "जिस व्यक्तिका मन निरन्तर जलाने, मारने, बाँधने छेदने और तान करने प्रादिमें ही निमग्न रहता है, पापमें जो तन्मय रहता है और दया जिसे छू नहीं गयी है उस व्यक्तिका ध्यान रौद्रध्यान समझना चाहिए।" और श्रुतसुरगुरुभक्तिः सर्वभूतानुकम्पा स्तवननियमवानेष्वस्ति यस्यानुरागः । मनसि न परनिन्दा घिन्द्रियाणां प्रशान्तिः कथितमिह हितयानमेवं हि धर्मम् ।। "जो मनुष्य निरन्तर देव, शास्त्र और गुरुकी भक्ति करता है, समस्त जीवधारियोंपर दया करता है, स्तुति, नियम और त्यागमें अनुरागवान् है, जो परनिन्दा नहीं करता तथा इन्द्रिया जिसके वशवर्ती हैं, उस पुरुषका ध्यान धर्मध्यान कहलाता है। तथा
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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