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प्रथम परिच्छेद
[२३ "आत्तं च तिर्यग्गतिमाहरार्या रौद्रे गतिः स्यात् खलु
नारकी च । धर्मे भवेद्देवगतिर्नराणां ध्याने च जन्मक्षयमाशु शुक्ले
॥२१॥"
* १० दूसरे दिन समस्त श्रावक जिनालय पहुंचे और मुनिराज हेमसेन के साथ रहनेवाले चन्द्रसेन आदि मुनियोंसे इस प्रकार पूछने लगे--'महाराज, मुनिराज हेमसेनने मरणपर्यन्त अत्यन्त दुष्कर तपस्या की था। कृपया बसलाइए, अब वे किस पर्याय में विराजमान
मुनिराज अतीत, वर्तमान और भविष्यत् के ज्ञाता थे। उन्होंने ध्यान लगाया और अवधिसे मोक्ष, स्वर्ग और पाताल तथा समस्त संभव स्थानोंमें हेमसेन महाराजकी खोज की, पर वे वहाँ नहीं मिले । चन्द्रसेन आदि समस्त मुनिनाथ बड़े विस्मित हुए। किन्तु जैसे ही उन्होंने पुन: अवधि लगायी तो मालूम हुआ कि हेमसेन महाराज जिन भगवान्के आगे समर्पित किये गये पके खरबूजे में कोट हुए हैं। चन्द्रसेन मुनि श्रावकोंसे कहने लगे:-'भाइयों, आपको यह जानकर पाश्चर्य होगा कि हेमसेन मुनिराज इसी मन्दिरमें जिनेन्द्र भगवान्के प्रागे रक्खे हुए खरबूजे में कीट पर्यायसे उत्पन्न हुए हैं।'
मुनि चन्द्रसेनकी बात सुनकर श्रावक उस खरबूजेको भगवानके सामनेसे उठा लाये और उसे फोड़कर देखा तो उस में उन्हें एक कीड़ा दिखलायो दिया।
इस घटनासे श्रावकोंको बड़ा विस्मय हुआ। वे चन्द्रसेन मुनिसे पूछने लगे-महाराज, हेमसेन मुनिराजने जीवन भर उग्र तपस्या की। फिर उन्हें इसप्रकारके कोट पर्याय में क्यों जन्म लेना पड़ा ? महर्षि चन्द्रसेन कहने लगे: यद्यपि उग्र तपस्या एक महान् वस्तु है ।