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________________ 1 . - -. - 194 ] मदनपराजय जो व्यक्ति इस मदनपराजयको पढ़ता है और सुनता है उसको सम्यग्ज्ञान और मोक्षकी प्राप्ति होती है। स्वर्गादिककी तो बात ही क्या ? मनुष्यको तभी तक विविध प्रकारकी दुर्गति होती है, तभी तक उसे निगोदमें रहना पड़ता है, तभी तक सात नरकोंमें जाना पड़ता है, तभी तक दरिद्रताका संकट झेलना पड़ता है, और तभी तक प्राणियोंका मन दुःसह पोर घोर अन्धकारसे प्राच्छन्न रहता है, जब तक बह इम मदनपराजय-कपा को नहीं सुनता है / / जो मनुष्य इस मदनपराजय-कथाको सुनता है और उसका वाचन करता है, काम उसे कभी बाधा नहीं पहुँचाता और वह निःसन्देह अक्षय सुखको प्राप्त करता है। ग्रन्थकार कहते हैं, मैं अज्ञानी हूँ। बुद्धि मुझमें है नहीं। फिर भी मैंने इस जिनस्तोत्रकी रचना की है। मैं नहीं जानता कि यह सम्पूर्ण ग्रन्थ शुद्ध है अथवा अशुद्ध / फिर भी समस्त मुनिनाथ और सुकवियोंसे प्रार्थमा है कि वे मुझे इस अपराधके लिए क्षमा करें और इस मदनपराजय-कथामें उचित संशोधन करके इसके लक्ष्यका सदैव प्रसार करें। इस प्रकार मदन-पराजय सम
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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