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________________ : पंचम परिच्छेद [ १९३ भगवान्ने तत्काल उस वृषभसेन गणधरको बुलाया जो सम्पूर्णशास्त्रसमुद्र के पारगामी थे, चन्द्रकी तरह मनुष्योंको आह्लादित करते थे, मदन- गजके लिए मृगेन्द्र-जैसे थे, दोषरूपी दैत्योंके लिए भ्रमरेन्द्र के समान थे, समस्त मुनियोंके नायक थे, कर्मोके नाश करने में कुशल थे, कुगतिनाशक थे, दया तथा लक्ष्मीके लीलायतन थे, संसारके पाप को प्राक्षित करने वाले थे, याचककि मनोरथ पूर्ण करने वाले थे, समस्त गणधरोंके ईश थे और ज्ञानके प्रकाश थे। और 'बुलाकर जिनराज उनसे इस प्रकार कहने लगे वृषभसेन, देखो हम तो मोक्षपुर जा रहे हैं । तुम तप:श्री, संयमत्री, गुण और तत्वोंसे मण्डित, महाव्रत, श्राचार, दया और नय आदिसे अलङ्कृत समस्त चारित्रपुर निवासियोंकी भली भाँति रक्षा करना । इस प्रकार चारित्रपुरकी रक्षाका सम्पूर्णभार वृषभसेन गणधरको सौंपकर भगवान् जिनेन्द्र बड़े ही प्रानन्दके साथ मोक्षपुर चले गये । इस प्रकार ठक्कुर माइन्ददेवके द्वारा प्रशंसित जिन (नाग) देवविरचित संस्कृतबद्ध मश्नपराजय में मुक्तिस्वयंवर नामक पाँचवाँ परिच्छेद सम्पूर्ण हुआ ।
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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