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________________ १७२ ] मदनपराजय सहवर भेजकर इसको प्राणदानके साथ ही इसकी दूषित वृत्तियोंको प्रोत्साहन क्यों है । शुत्रलयानवीरकी बात सुनकर जिनराज कहने लगे - शुक्लध्यानवीर, कामको हमें इस समय नहीं मारना चाहिए, क्योंकि यह राजधर्म है कि कोई शरणागत वैरीको भी भृग्यु दण्ड न दे । नीतिकारोंने कहा भी है "वह हाथ किस कामका जो दूसरेका धन छुए, परस्त्रीके स्तनका लम्पट हो, याचकोंके गलेमें धक्का देकर उन्हें बाहर करे और शरणागतका वध करे ।" फिर हमारा प्रयोजन सिद्ध हो ही चुका है। अब इसके मारतेसे क्या लाभ ? * २० ततो रतिश्वाच-देव, शुक्लध्यानयोरोऽयं शुभतरां विज्ञप्तिकां करोति । एवंविधोऽयमस्मात् यदि मारथितु शक्नोति कोऽत्र सन्देहः ? यतस्तादृशी शक्तिरस्य शुक्लध्यानवीरस्य दृश्यते । उक्त ं च FTM "आकारैरिङ्गितैर्गत्या चेष्टया भाषणेन च । taaraविकारेण लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः ॥२१॥" तदाकयं जिनेन्द्रो विहस्य प्राह है रते, मा भैषीः । न भविष्यत्येवम् । किमयं शुक्लध्यानवीरो मम वचनमुल्लङ घघ युष्मान् हनिष्यति ? एवमुक्त्वा रतिप्रीतिभ्यां सह शुक्लध्यानबीरं प्रस्थापयामास । ततोऽनन्तरं मदनसकाशमागस्य रतिप्रीतिभ्यां वचनमे. तदभिहितम् - भो नाथ, भवदर्थं नानाविज्ञापन वचनंरावाभ्यां जिननाथो विज्ञप्तः । प्रन्यच्च देव, तव मरणमवश्यं प्राप्तम -
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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