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________________ चतुर्थ परिकछेद [ १४३ केवलशानवीर आदि सुभट ठहरे हुए थे वहां चला गया। और वहाँ पहुँचकर उसने सबको इस प्रकारसे भिड़ा विया : पांच महावत पाँच इन्द्रियों के साथ भिड़ गए और शुक्लध्यानके साथ प्रातरौ मिल गए। और जिस प्रकार मृगेन्द्र हाथियोंके साथ जुट जाते हैं उसी प्रकार तीन शल्य-वीर भी योग-वीरों के साथ रणाङ्गणमें जुट पड़े। तत्त्वों के साथ भय मिल गये और भाचार वीरोंके साथ मानव मिल गये। राग-द्वेष क्षमा और संयमके साथ भौर अर्य तथा दण्ड मुण्ड-सुभटोंके साथ भिड़ गये। नव पदार्थोंके साथ अनय, धोंके साथ अष्टादश दोष, ब्रह्मवीर अब्रह्म वीरों के साथ और कषायवीर तप-वीरोंके साथ भिड़ पड़े। इस प्रकार जो जिसके सामने प्राया वह दूसरेसे टक्कर लेने लगा। तदनन्तर परमेश्वर आनन्दने स्वरशास्त्रज्ञ सिद्धस्वरूपसे पूछासिद्धस्वरूप, बताओ तो पहले हमारी सेनामें भगदड़ क्यों मच गयी थी। उसने कहा-देव, उस समय तुम्हारी सेना उपशम-भूमिकामें स्थित थी। इसलिए उसमें भगदड़ मच गयी थी। अब यदि क्षपक श्रेणो में प्रारूढ़ होगी तो नियमत: उसकी विजय होगी। सिद्धस्वरूपकी बात सुनकर जिनराजको बड़ी खुशी हुई। वे कहने लगे–यदि यह बात है तो तुम हो उसे क्षपकग्रणी भूभिमें आरूढ़ कर दो। जिन/जकी बात सुनकर तिमस्वरूपने जिनराजकी सेनाको क्षपकारिणभूमि में प्रारूढ़ कर दिया। यह देखकर जिनराजको अत्यन्त हर्ष हुआ । * १३ ततोऽनन्तरं रथवरसङ्ग घटहेषितहययूथर्मवमरमत्तमातङ्ग विस्फुर्विजापत सम्मुख चरणमहावीरः पूरितं
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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