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मदन पराजय इस द्रुतगतिसे दौड़नेवाले मन-मातङ्गका कौन सामना कर सकता है ? इसलिए जिनेन्द्रने यह अच्छा काम नहीं किया जो कामके साथ युद्ध ठान बैठे। मैं यह बात इसलिए कह रहा है कि मैंने कामका पौरुष देखा है, सुना है और अनुभव भी किया है। कामन अपने परिषप्रतापसे जिन-जिनको पछाड़ा है, उनकी गिनती गिनानेसे लाभ नहीं है । इतना कहकर वह सुरेन्द्र के पास गया और उसके कान में जाकर सब कुछ वृत्तान्त सुना दिया। ब्रह्माने इन्द्र के कानमें इस प्रकार कहा---
'मैं, शङ्कर और हरि तीनों ही एकत्र मिलकर मदनके ऊपर चढ़ाई करने के लिए चलें। इतने में शङ्कर कहने लगे - संसारमें मेरी 'मदनारि' के नामसे प्रसिद्धि है । शङ्करके इस कथनसे हम लोगोंको भी गर्व हो पाया। इस प्रकार मदनारि गिरिजेश अभिमानके मारे पागे-आगे दौड़ते हुए जैसेही कामके स्थान पर पहुँचे-दोनोंका कामसे सामना हो गया। कामने श्रीकण्ठके वक्षस्थलमें एक बाण मारा, जिससे पाहत होकर वह मूच्छित हो गये और पृथ्वी पर गिर पड़े। इतनेमें पार्वती वहाँ आ गयौं और अपने वस्त्रके अञ्चलसे हवाकर उन्हें अपने घर ले गयीं । वहाँ गङ्गाजलसे सिंचन करने पर वह स्वस्थ हो सके। तदनन्तर उसने नारायणको दो बाण मारे, जिससे कमला घबड़ा गयी। और काम के पैरोंमें गिरकर भीख मांगने लगी। उसने कहा-'मैं अपने पतिका जीवन-दान चाहती हूँ। कामदेव, तुम मुझे विधवा नहीं करो।" इस प्रकार प्रार्थना करके यह उन्हें घर ले गई । तदुपरान्त कामने मुझे भी अपने दो बाण मारे। उस समय मुझ ऋश्याने बचाया । इसलिए उस दिनसे लेकर ऋश्या मेरी पत्नी हो गई 1"
___ इन्द्र, यह घटनाचक्र मैं तुम्हें इसलिए सुना रहा हूँ कि तुम इस वृत्तान्त के सुनने के पात्र हो । यदि यही बात अन्य मुढोंको बताई