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चतुर्थ परिच्छेद
[ १३१ इन्द्रने उत्तरमें कहा-ब्रह्मन् जब तक निर्वगके साथमै प्रचण्ड सम्यक्त्ववीर नहीं आता है तब तक जिनराजको सेनाकी सुरक्षा नहीं है । वह आगे कहने लगा-ब्रह्मन्, इसलिये आप क्षणभरको जरा स्थिर होकर बैठ जायो। देखो, मैं अभी हाल निःशङ्का शक्तिके आघातसे मिथ्यात्वको संकड़ों खण्डके रूपमें दिखलाता हूँ।
ब्रह्मा इन्द्रसे कहने लगे---इन्द्र, ग्रह तो तुमने ठीक कहा । पर यह तो बताओ, इस प्रकारसे मिथ्यात्वके भङ्ग हो जानेपर भी मोहमालको कौन पराजित कर सकेगा ? कहा भी है :--
_ "मोहसे बलवान् न धर्म है और न दर्शन है । न देव हैं और न ही बलशाली मनुष्य है।
चराचर तीनों लोकमें मोहसे बढ़कर कोई सुभट नहीं है । जिस प्रकार गजोंमें गन्धगजकी प्रसिद्धि है, उसी प्रकार शत्रुनों में मोह मल्ल भी प्रसिद्धिमान् है।"
ब्रह्माकी बात सुनकर सुरेन्द्र हंस पड़ा। वह कहने लगाब्रह्मन्, मोह का पुरुषार्थ तभी तक कार्यकर हो सकता है जब तक बह केवलज्ञान-वीर का साक्षात्कार नहीं करता है । कहा भी है -
"सिंह जब तक आंख बन्द करके गुफामें सोता है हिरण सभी तक स्वच्छन्द विचरण करते हैं। किन्तु जैसे ही वह जागता है और जागकर सटामोंको फटकारता हुमा गरजकर मुफासे बाहर आता है उस समय विचारे हिरनोंको दिशाओं में भागनेके सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता । और -
उत्कट विषवाले सांप तभी तक फुसकारते है, जब तक उन्हें पक्षिराज गरुड़ दिखलायी नहीं देता।"
ब्रह्माने इन्द्रकी बात सुनो और कहने लगा- इन्द्र, यदि आपने कहने के अनुसार केवलज्ञानवीर मोहको जोत भी ले, लेकिन यह बतानो,