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________________ चतुर्थ परिच्छेद [ १२७ उस समय तोर, भाला, फरसा, मदा, मुद्गर, धनुष, बाग भिण्डि, हल मुसल, शक्ति, कुन्त, कृपाण. चक्र और दिव्य अस्त्रशस्त्रोंसे दोनों दलफे योधाओंमें युद्ध होने लगा। इस युद्धकालमें अनेक सैनिक भरे मोर जोवन-शून्य होकर पृथ्वोपर गिर गए। कुछ मूच्छित हो जाते थे और कुछ पुन: सावधान होकर लड़ने लगते थे। किन्हींका हंसना बन्द हो गया था और कुछ अपने स्वामीका प्रोत्साहन प्राप्त करके स्वामीके प्रागे-आगे दौड़ रहे थे। अनेक सैनिक युद्धसे डरकर कातर हो गये | कोई सम्पूर्ण शरीर में प्राघात पहुँचनेसे मर गये और स्वर्ग में जाकर देवाङ्गनारों के प्रेम-पात्र हुए। कुछ धीर-वीर सैनिक इस प्रकारके थे जो शत्रुओंके आघातोंसे शरीरकी अन्सड़ियां कट जानेपर भी निर्भय होकर वैरियोंके साथ युद्ध करते रहे। कुछ सैनिकोंकी प्रांखे फिर गयीं। किन्हींके हाय-पांव कट गये । और किन्हीके शरीर खूनसे लथ-पथ हो गये । इस युद्धकाल में वे वीर सेनानी इस प्रकारसे मालूम हुए असे वृक्षारली-मण्डित प्ररम्य में किंशुक फूले हुए हों। उस समय बाणोंके प्रहारसे अनेकों कटे हुए शिर उछलते थे जो राहुके समान प्रतीत होते थे और उनसे ऐसा मालूम देता था जैसे अनेकों राह और सूर्य का युद्ध हो रहा हो । इस प्रकार मिथ्यारव और दर्शनवीरका यह युद्ध अत्यन्त भयंकर था । इस तरह मिथ्यात्व और मिनेन्द्र के अग्रणी दर्थनबीरका परस्पर युद्ध हो हो रहा था कि मिथ्यात्वने दर्शन-बीरको समरभूमि में पछाड़ दिया। उस समय समरार्णव इस प्रकारसे प्रतिभासित होने लगा जिनेन्द्रका संन्य-सागर मेदा, मांस, चर्बी आदि कीचड़से युक्त हो गया । खूनके जबसे भर गया । घोड़ोंको टूटी हुई खुररूपी
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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