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मदनपराजय
सत्रासिमरिकाशिस्त्रनिचयो भातीव मीनाकृतिः केशस्नायुशिराप्रकालनिचयः शवालयद् एश्यते । यानीभेन्द्रकलेवराणि पतितानीगरणाम्भोनिषौ पोतानीव विभान्ति तानि रुधिरे वाऽस्थीनि शाखा इव
॥४८॥ वीक्ष्येसणसागरं जिनपतेः संन्यञ्च नश्यस्यलं मागं त्यज्य(स्यक्त्वा धर्म)विशत्यमार्गनिमये
दोना(न) जनं (ना)शङ्कितम् । धीरत्वं स्वपतेनं लक्षयति तदानछत्यही मन्दिर मिथ्यात्वस्य भयानरेषु शरणं गच्छत्स्वनेकेषु च ॥४६॥ त्यक्तारमशरणं जातमतीचारे प्रसितम् । कस्था मन्यते नाशा मयस्वति तान्जतम् ॥५०॥
* ८ इतने ही में बन्दोने कहा-स्वामिन् देखिए; जिनराज पागये । आप यह क्या गला फाड़ रहे हैं ? यह कह कर वन्दी कामके लिए जिनराजके सुमट दिखलाने लगा।
___वह कहने लगा-देखो, यह अत्यन्त बलवान निवेग वीर है, जिसके हाथमें खड्ग चमक रहा है। और यह दण्डाधिपति सम्यक्त्व है, जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता।
सामने यह दुर्जय और दुःसह तत्त्व-वीर है, और देखो-देखो, यह महावत-राजा भी आ गए हैं ।
___साथ ही चराचर विजेता और महाधीर यह, ज्ञान-वीर हैं और देखो, यह संयम वीर है जो रियोंके लिए द्वितीय यमकी
बन्दी इस प्रकारसे कामदेवको जिनराजको सेनाकै सेनानियों का परिचय करा हो रहा था कि इतने में कामकी सेना वेगसे आगे निकल गयो और जिनराज तथा कामकी सेनामें भयंकर संघर्ष छिड़ गया ।