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धतुर्थ परिच्छेद
[ १२३ कर्तव्य-प्रकर्त्तव्य का विचार नहीं करना पड़ता। किसीकी बातपर ध्यान नहीं देमा पड़ता है। मान-अपमान नहीं मालूम देते और सबके सिर-माथे रहनेका अवसर प्राप्त होता है। इस प्रकार मूर्ख मनुष्य सदैव सुखपूर्वक जीवनयापन करता है ।
अपक्वज्ञानी मूों के साथ वार्तालाप करनेके चार परिणाम हैं :-वाणीका सय, मानस्ताप, दण्ड गोर उमाका नकदार !
संज्वलन मन में सोचता है -यद्यपि यह बात है, फिर भी कामदेव हमारा स्वामी है । इसलिए मुझे उससे इस सम्बन्ध में कुछ न कुछ अवश्य कहना चाहिए।
यह सोचकर संज्वलन कामदेवके सामने पहुंचा । और कहने लगा--स्वामिन् पाप जिनराज को जीत नहीं सकते। फिर यह छल क्यों कर रहे हैं ?
कामदेव कहने लगा-अरे मूढ़, क्षत्रियोंको वृत्तिको न छल बतला रहा है । क्या तुझे जीवनको परिभाषा नहीं मालूम है ?
"मनुष्योंका यदि एक क्षण भी विज्ञान शौर्य, विभव और आर्यजनोचित प्रवृत्तियोंके साथ व्यतीत होता है, बुद्धिमान् उसे ही जोवनका फल कहते हैं। वैसे तो कौवा भी चिरकाल तक जीवित रहकर अपनी उदर-पूर्ति करता रहता है ।"
कामदेव कहता गया-संज्वलन, फिर जिनराजने जितने अपराध किए हैं. हम उन्हें क्या-क्या गिनावें । पहले तो इसने हमारे रत्न चुराये । दूसरे हमारे दूतका अपमान किया। तीसरे जगप्रसिद्ध बन्दीकी नाक काटी और विरोधाग्निको पहले की अपेक्षा और अधिक प्रज्वलित किया । और त्रीथे यह हमारे ऊपर स्वयं ही चढ़कर भागया
है। संज्वलन तुम्हारी दृष्टिमें यदि यह छल हो है तो मैं सिद्धि. अङ्गताके लिए उसे छोड़कर लज्जित नहीं होना चाहता। और यदि