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________________ चतुर्थ परिद है । और आपने यह और हो अभद्र काम किया जो काम के साथ युद्ध करना प्रारंभ कर दिया। लेकिन मालूम होता है, आप इस युद्ध में विजयी न हो सकेंगे और आपको समराङ्गणसे भागना पड़ेगा। उस समय कामके डरसे और आत्म-रक्षाको दृष्टिसे यदि तुम स्वर्ग भी पहुंचे तो वहाँ मी तुम्हारी रक्षा न हो सकेगी। काम वहाँ भी पहुँचकर इन्द्रसहित तुमको खींच लावेगा । यदि तुमने पाताल में प्रवेश किया तो काम पाताल में भी पहुँचकर शेषनागसहित तुम्हें मार डालेगा । और यदि सागरमें प्रवेश किया तो काम वहाँ भी पहुंचकर उसके जलको सुखा देगा और तुम्हें पकड़ लावेगा । जिनराज, मुझे इस सम्बन्ध में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है । यदि अब भी तुम्हारी इच्छा संग्राम करनेकी है तो कामके कठिन कोदण्उसे छोड़ी गयी बाणावलीका सामना करो और यदि तुम्हारा युद्ध करनेका विचार न हो तो कामको दासता स्वोकार कर लो। इसके अतिरिक्त एक बात और है। जिन राज, कामने हमारे हाथमें कुछ धीर-वीर पुरुषोंको नामावली दी है। तुम उसे देखो और बतानो कि क्या तुम्हारी सेनामें ऐसा कोई धौर-वौर सुभट है जो इन्द्रिय, दोष और भय सुभटोंको जोत सके। साथ ही वह अपना वीर भी बतलाइए जो व्यसन, दुष्परिणाम, मोह, शस्य और प्रास्रव आदि सुभटोंको जीत सके तथा मिथ्यात्व-वीरके द्वारा समर-सागरमें डुबोए जानेवाले योधाओंको बचा सके। बन्दी कहता गया - कामने कहा है कि इस प्रकार हमने अपनी सेनाके कतिपय वोरों की हो यह संख्या गिनायी है । समस्त वीरोंके नाम कौन गिना सकता है। इसलिए यदि आपके यहाँ इन योद्धाओंके प्रतिद्वन्द्वी योधा है तो आप इस नामावली में संशोधन कर दीजिए और यदि आपके यहाँ इनकी जोड़के कोई योधा नहीं हैं तो चलकर कामदेवकी अधीनता स्वीकार कीजिए।
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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