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________________ १०४ ] मदनपराजय सन्नाहाच्छादिताङ्गः स्वसमयनेत्रपटोत्तमानबद्धविराजमानः करतलकलितमहासमाषिगवानहरणः सिद्धस्वरूपस्वरशास्त्रतत्वज्ञसहितः परमेश्वरो मवनोपरि यावत् संचलितस्तावत्तस्मिन्नवसरे भव्यजनैरभिमन्यते, शारदमाग्ने मङ्गलगानं गीयते, क्यया शेषाभरगं क्रियते, मिथ्यात्वपंचक(फेन) निम्बलवणमुत्तार्यते। [चतुर्थ परिच्छेद ] - * १ जब जिनराजके पाससे. राग-द्वेष नामके दोनों दूत चले गये तो उन्होंने संवेगको बुलाकर कहा-संवेग, तुम बहुत जल्द अपनी सेना तयार करो। जिनराजकी आज्ञा पाते ही उसने वैराग्यडिडिमको बुलाया और कहा-अरे वैराग्यडिडिम, तुम शोघ्र ही अपनी भेरी बजाओ जिससे अपनो सेना जल्दी एकत्रित हो जाय ।। वैराग्यडिडिमने अपनी भेरी बजायी और उसके शब्दको सुनते ही विपक्षोकी सेनाका विध्वंस करनेवाले योद्धा कामके ऊपर चढ़ाई करनेके लिए इस प्रकार आ पहुंचे : उस समय दश धर्म-नरेश भी प्राकर उपस्थित हो गये। ये नरेस मदोन्मत्त काम-हाथीको पराजित करनेके लिए सिंहके समान प्रतीत होले थे। ठीक इसी समय दश संयम-नरेश और दश प्रचण्ड मुण्ड-नरेश भी आ डटे। और इसी समय वयोवृद्ध क्षमा और दम दो शुरवीर भी प्रायचिननामक दश राजओं के साथ पाकर जिनेन्द्रकी सेनामें सम्मिलित हो गये। जिस प्रकार कल्पकालके अन्त में सातों समुद्र एकत्रित हो जाते हैं उसी प्रकार अत्यन्त शूर सात तत्व-राजा भी पाकर सम्मिलित हो
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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