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________________ चतुर्थ परिच्छेद [ १०५ गये । और अत्यन्त सत्त्वशाली माठ कुलाचल और पाठ दिग्गजों के समान आठ महामुण-नरेश भी प्रा पहुँचे । और जिस प्रकार कल्पान्समें प्राणियोंके विनाशके लिए बारह सूर्य उदित हुए थे, उसी प्रकार कामको सेनाके विध्वंसके लिए बारह तपरूपो राजा भो पाकर उपस्थित हो गये । ___ इनके अतिरिक्त अत्यन्त शूरवीर पाँच प्राचार नरेश और अट्ठाईस मूलगुण-राजा भी आकर सेनामें मिल गये । और शत्रुको त्रस्त करने में समर्थ अत्यन्त तेजस्वी द्वादश प्रजनरेश और तेरह वीर वारियराजा भी आ पहुंचे । और इनके पश्चात् प्रबल कालके दूतके समान चौदह पूव-राजा भो प्राकर उपस्थित हो गये। साथ ही अनन्तशक्तिशालो और वीर कामके कुलको विध्वस्त करनेवाले दुर्जय नौ ब्रह्मचर्य-नरेश भी प्राकर सैन्य में सम्मिलित हो गये। तथा शत्रुरूपी हाथियोंके लिए गन्धगजको तरह शूरवीर नयराजा और तीन गुप्ति-राजा भी प्राकर जिनेन्द्रकी सेनामें आ मिले । और जो समस्त शरणागत देहधारियोंको आश्रय प्रदान करते हैं वे अनुकम्पा आदि नरेश भी आ पहुँचे । __ इनके अतिरिक्त पाँच मुखवाला दीर्घ शरीरधारी धीर और नीरदके समान ध्वनि करनेवाला स्वाध्याय-नरेश भी सिंहके समान कामको नष्ट करने के लिए प्राकर उपस्थित हो गया। तथा धर्मचक्रसे सम्पन्न और चतुर्भुज दर्शन-बीर भी दैत्यारि केशवकी तरह स्मर-दैत्यके विनाशके लिए पाकर तैयार हो गया। तदनन्तर मतिज्ञान-नरेश भी अपने अधीनस्थ तीनसौ छत्तीस अन्य राजाओंके साथ जिनेन्द्रकी सेनामें प्राकर समिलित हो गया।
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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