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________________ क्षपणासार गापा २५६] [ २२३ शङ्का-गृहस्थके धर्म या शुक्लध्यानमेंसे कौनसा ध्यान होता है ? । समाधान-गृहस्थके धर्म या शुक्लध्यान सम्भव नहीं, क्योंकि वह ग्रहकार्यों में फंसा रहता है । श्री शुभचन्द्राचार्य ने कहा है___ "खपुष्पमथवाशृङ्ग खरस्यापि प्रतीयते । न पुनर्देशकालेऽपि ध्यानसिद्धिर्गहाश्रमे ।। ___ आकाशके पुष्प और गधे के सोंग नहीं होते हैं । कदाचित् किसी देश या काल में इनके होने की प्रतीति हो सकती है, किन्तु गृहस्थाश्रम में ध्यानकी सिद्धि होनो तो किसी देश व कालमें सम्भव नहीं है' । पुनरपि कहा है "मुनीनामेव परमात्मध्यानं घटते । तप्तलोहगोल कसमानगृहीणां परमात्मध्यानं संगच्छते ।" __ मुनियोंके ही परमात्माका ध्यान अर्थात् धर्मध्यान घटित होता है। तमलोहके गोलेके समान गृहस्थियोंके परमात्माका ध्यान अर्थात् धर्मध्याव वहीं होता । इसोप्रकार भावसंग्रहमें भी कहा है "अट्टरउद्द झाणं भई अयित्ति तम्हि गुरगठाणे । बहु आरंभपरिग्रह जुत्तस्स य एस्थि तं धम्म' ॥" गृहस्थके इस (५३) गुणस्थानमें आर्त-रौद्र और भद्र ये तीनप्रकारके ध्यान होते हैं, इस गुणस्थानवर्ती जोवके बहुत आरम्भ व परिग्रह होता है इसलिए इस गुणस्थानमें धर्मध्यान नहीं होता। और भी कहा है-- "घरवावारा केई करणीया अस्थि ते ण ते सव्वे । झाणट्ठियस्स पुरवा चिट्ठति णिमोलियच्छिस्स ।।" गृहस्थों को घरके कितने ही कार्य करने पड़ते हैं और जब वह गृहस्थ अपने वेत्रोंको बन्दकर ध्यान करने बैठता है तब उसके सामने घरके करने योग्य सब व्यापार आ जा हैं। १. ज्ञानार्णव भ० ४ श्लोक १७ । २. मोक्षप्राभृत गाथा २ की टीका। है. भावसंग्रह गाथा ३५७ । ४. भावसंग्रह गाया ३८५ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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