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________________ १७०] क्षपणासार [गाया २०३.२०४ द्रव्यको अंतरायाममें देकर द्वितीयस्थिति के और इस अन्तरायामके एकगोपुच्छ किया जो प्रथमस्थितिकाण्डकायामसे अन्तरायाम बहुत होता तो वहां अन्तरायाम पूर्ण नहीं होता तब अन्तरस्थितिके और द्वितीयस्थिति के एक गोपुच्छ नहीं होता । अत: यहां अन्तरायाम से प्रथमस्थितिकाण्डकायाम बहुत कहा है, उससे अन्तरायाम और द्वितीयस्थिति के एकगोपुच्छ प्रथमस्थितिकाण्डकको चरमफालिके पतन समय में ही होता है' । जहाँ विशेष (चय) रूप घटना क्रम होता है वहां गोपुच्छ मंज्ञा है। "सुहमारणं किट्टीगणं हेवा अणु दिएणगा हु थोवाओ। उरि तु विसेसहिया मज्झे उदया असंखगुणा ॥२०३।।५६४॥ अर्थ- सूक्ष्म साम्परायिककृष्टियों के अधस्तनभाग, अनुदीर्ण कृष्टियां स्तोक हैं, उपरिमभागमें अनुदोर्ण सूक्ष्मकृष्टियां विशेषअधिक हैं । मध्य में उदीणं सूक्ष्मकृष्टियां असंख्यातगुणी हैं। विशेषार्थ-प्रथमसमयवर्ती सूक्ष्म साम्परायिकक्षपकके सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों के असंख्यातबहुभाग उदोर्ण होते हैं। ये उदीर्णमान सूक्ष्मष्टियां ऊपर और नीचेके संख्यातवेंभागको छोड़कर मध्यके बहुभागमें पायी जाती है। अधस्तन अनुदीर्णसूक्ष्मकृष्टियां स्तोक हैं, उपरिम अनुदीर्णसूक्ष्मष्टियां विशेष अधिक है, मध्य में उदीर्णमान सूक्ष्मकृष्टियां असंख्यातगुणी हैं। जिसप्रकार सूक्ष्म साम्परायगुणस्थानके प्रथमसमयमें उदीर्ण और अनुदोर्णकृष्टियोंका कथन किया है वैसा ही द्वितीयादि समयों में जानना, उसमें कोई विशेषता नहीं है, किन्तु द्वितीय समयमें पूर्व उदीर्णमान कृष्टियोंके असंख्यातवेंभागको छोड़ देता है और अबस्तन अनुदोर्णकृष्टियो असंख्यातवेंभाग बढ़ जाती है। "सुहमे संखसहस्से खंडे तीदे वसाणखंडेण । पागायदि गुणसेढी आगादो संखभागे च ॥२०४॥५६५।। १. जयघवल मूल पृष्ठ २२१४ । २. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८७२ सूत्र १३३६ से १३४३ । धवल पु०६ पृष्ठ ४०६ । ३. जयधयल मूल पृष्ठ २२१७ । ४. क. पा० सुत्त पृष्ठ ८७२ सूत्र १३४४ । ध० पु० ६ पृष्ठ ४०६ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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