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________________ १५८] क्षपणासार [ गाथा १८६ मानकी द्वितीयसंग्नकृष्टि से मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें विशेषअधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है तथा मानकी तृतीयसंग्रहकृष्टिसे मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमित होते हैं। मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमित होते हैं, मायाको द्वितीयसंग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में विशेषाधिक प्रदेशाग्र संक्रमित होते हैं, मायाको तृतीयसंग्रहकृष्टि से लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमित होते हैं। लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे लोभकी द्वितीयसंग्रह कृष्टिमें विशेषाधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है, लोभकी प्रथमसंग्रहकष्टिसे लोभको तृतीय संग्रहकष्टि में विशेषअधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है। अधिक क्रमसे द्रव्यका संक्रमण करनेवालेके ये दशस्थान हैं। क्रोधकी प्रथमसंग्रहकष्टि से मानकी प्रथमसंग्रह कृष्टि में (पूर्वोक्त संक्रमणसे) संख्यात गुरिपत प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है । क्रोधको ही प्रथमसंग्रहकष्टि से क्रोधको ही तृतीय संग्रहकृष्टि में विशेषअधिक प्रदेशानका संक्रमण होता है । क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे क्रोधको द्वितीयसंग्रहकृष्टिमें संख्यात गुणे प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है। विशेषार्थ-~-कृष्टिकरणकालके समाप्त होनेपर अनन्तरसमयमें कोषको प्रथमसंग्रहकष्टिका अपकर्षण करके उसका देदन करनेवालेके क्रोधको द्वितीयसंग्रहकष्टिसे मानकी प्रथमष्टिमें अधःप्रवृत्तसंक्रमणद्वारा संक्रान्त किये जाते हैं वे कहे जानेवाले अन्यसंक्रमणद्रव्यकी अपेक्षा स्तोक हैं। जिस संग्रहकृष्टिका अनुभाग अल्प होगा उसके प्रदेशाग्न बहुत होते हैं । बहुत प्रदेशों में संक्रमण होने वाले प्रदेश भी बहुत होते हैं, अतः पूर्वकथित संक्रमणद्रव्य से यह संक्रमणद्रव्य विशेष अधिक है। पूर्व द्रव्यको पल्यके असंख्यातवेंभागसे खण्डितकर एकखण्ड प्रमाण विशेष अधिक हैं । मामको प्रथमसग्रहकृष्टिसे मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमण होनेवाला द्रव्य विशेष अधिक है, क्योंकि क्रोधको तृतीयकृष्टिकी प्रतिग्रहस्थानरूप मानको प्रथमकृष्टिको अपेक्षा मानकी प्रथमकृष्टि की प्रतिग्रहस्थानरूप मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टि विशेष अधिक है। आधार विशेष अधिक होने के कारण अधिकप्रदेशोंका संक्रमण होता है । यहांपर विशेषअधिक प्रमाणका प्रतिभाग आवलिका असंख्यातवांभाग है इससे आगेके स्थानों में सत्त्वकर्म के अनुसार ही विशेषअधिक संक्रमण होता है और सर्वत्र अधःप्रवृत्तसक्रमण भागहार है । शङ्का-क्रोध-मान व मायाकी संग्रह कृष्टियोंका द्रव्य अन्यकषायकी संग्रहकृष्टियोंमें होता है अतः वहाँपर अधःप्रवृत्तसंक्रमणभागहार होता है अतः यहांपर अपकर्षणभागहार होना चाहिए जो अधःप्रवृत्तसक्रमणभागहार असंख्यातगुणाहीन है ?
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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