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________________ गाथा १८६ ] क्षपणासार [ १९ समाधान--ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि परिणामों के माहात्म्यसे लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टि के संक्रमण में भी भागहारमें हानि नहीं हुई है। लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें से लोभकी द्वितोयसंग्रहकृष्टिमें संक्रमित होनेवाले प्रदेशाग्रका प्रतिग्रहस्थान लोभको द्वितोयसंग्रहकृष्टि है जो अल्प है और लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टि से लोभकी तृतीयसंग्रहकृष्टि में संक्रमित होनेवाले प्रदेशानको प्रतिग्रहस्थान लोभकी तृतीयसंग्रहकृष्टि है जो विशेषअधिक है । प्रतिग्रहस्थान में विकता होने का विषयभूत संक्रमणप्रय भी विशेष अधिक हो जाता है । लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे जितने प्रदेशाग्न लोभकी तृतीयकृष्टिमें संक्रमण किये जाते हैं उससे संख्यातगुणे प्रदेशाग्र क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि से मानको प्रथमसंग्रहकृष्टि में संक्रमित किये जाते हैं, क्योंकि लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिको अपेक्षा क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में प्रदेशाग्रसत्त्व १३ गुणा है। इसलिये प्रदेशसंक्रमण संख्यातगुणा है । उससे क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि से क्रोधको तृतीयसंग्रहकष्टि में प्रदेशसंक्रपण विशेषाधिक है, क्योंकि पूर्व प्रतिग्रह स्थानसे क्रोधको तृतीयसंग्रहकृष्टिरूप प्रतिग्रहस्थान विशेष अधिक है। मतः प्रदेशसंक्रमण भी विशेष अधिक है । उससे क्रोधकी प्रथमसंग्रहकृष्टि से कोषकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि में संक्रमण होने वाले प्रदेशाग्र संख्यालगुणे हैं । यद्यपि प्रतिग्रहस्थानस्वरूप क्रोधकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि क्रोधको तृतीयसंग्रहकृष्टि से अल्प है तथापि वेद्यमान क्रोधकी प्रथमसंग्रह कृष्टि से अनन्तर वेद्यमान क्रोधकी द्वितोयसग्रहकृष्टि में संक्रमित होनेयोग्य प्रदेशाग्न संख्यातगुणा है । यह बादरकृष्टि सम्बन्धी प्रदेशाग्र यद्यपि अतिक्रान्त हो चुका है तथापि की जानेवाली सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टियों में आश्रयभूत मानकर यहां कहा गया है। लोभको द्वितीयकृष्टि से जो प्रदेशाग्न लोभको तत्तीयसंग्रह कृष्टि में संक्रान्त हुए हैं उनसे संख्यातगुणे प्रदेशाग्न सूक्ष्मकृष्टि रूप होते हैं ऐसा जो गुणकारका अनुक्रम कहा गया है वह नवीन नहीं है, किन्तु बादरकृष्टियों में भी संख्यातगुणकार का अनुक्रम है यह बतलाने के लिए बादरष्टियोंके प्रदेशसंक्रमणके संक्रमण में अल्पबहत्वका कथन किया गया है। १. जयधवल मूल पृष्ठ २२०३ से २२० । २. जयधवल मूल पृष्ठ २२०५-२२०६ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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