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________________ गाथा १०६-१०७ क्षपणासाय [e प्रकार क्रोधकषायको उदयागत प्रथमसंग्रहकृष्टिका द्रव्य संस्पात गुगा अर्थात् तेरहगुणा है, क्योंकि इसमें नोकषायका द्रव्य मिल गया है।' किस कषायोदयसे श्रेणी चढ़नेवाले के कितनी संग्रहकृष्टियां होती हैं - कोहस्त य माणस्स य मायालोभोदएण चडिदस्स । बारस णव छ तिगिण य संगह किट्टी केमे होंति ॥१०६॥४७॥ अर्थ-क्रोध-मान-माया अथवा लोभके उदयसे क्षपकणि चढ़नेवाले के क्रम से १२-६.६ व ३ संग्रहटियां होती है। विशेषार्थ:-संज्वलनशोधके उदयसहित जो जीव श्रेणी चढ़ता है उसके तो चारों कषायोंकी बारह संग्रहकृष्टि होती हैं, क्योंकि प्रत्येक कषायकी तीन-तीन संग्रहकाष्टि होती हैं । मानकषायके उदयसहित श्रेणी चढ़ता है, उसके कृष्टिकरणकालसे पहले ही कोषका संक्रमण करके स्पर्धकरूपसे क्षय होता है इसलिए संज्वलनक्रोधको संग्रहकष्टि नहीं होती अवशेष तीन कषायों की है संग्रहकृष्टि होती हैं, मायाकषायके उदयसहित जो श्रेणि चढ़ता है उसके क्रोध व मानकषायका कृष्टिकरणकालसे पहले ही संक्रमण करके स्पर्धकरूपसे क्षय होता है इसलिए दो कषायोंकी छहसंग्रहकष्टि होती है तथा लोभकषाय के उदयसहित जो श्रेणो चढ़ता है उसके क्रोध-मान व मायाकषायका कृष्टिकरणकालसे पहले हो स्पर्धकरूपसे संक्रमणकरके क्षय होता है इसलिए एक लोभकषायकी ही तीन संग्रहकृष्टि होती हैं । यहां जितनी संग्रहकृष्टि होती हैं उन्हीं में कृष्टिप्रमागका विभाग पंपासम्भव जानना चाहिए। अन्तरकृष्टियोंकी संख्या व उनका क्रम-- संगहगे एक्कक्के अंतरकिट्टी हवदि हु अंकता। लोभादि अांतगुणा कोहादि अांतगुणहीणा ॥१०७॥४६॥ अर्थ-एक-एक संग्रहकृष्टिमैं अन्त र कृष्टियां अनन्त हैं तथा उन संग्रहं कृष्टियोंमें लोभकषायसे लेकर क्रमसें अनन्तगुणा बढ़ते हुए और क्रोधकषायसे लेकर ऋषसे --- घटता हुआ अनुभाग जानना । १. जयषवल मूल पृष्ठ २०८२ से २००६ तक । २. जयधवल मूल पृष्ठ २०७१ से २०७३ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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