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________________ द 1 i 1 2 ६ : ६ T ८ ]. क्षपणासार [ गाथा १०५ शंका- क्रोधकषायकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि के द्रव्यसे तृतीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य कितना अधिक है? समाधान -- क्रोधकषायकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि के द्रव्यको पत्य. असंख्यात वैभाग से खण्डित का एक तृतीय प्रकृष्टक द्रव्य विशेष अधिक है।' उदय (वेदक ) की अपेक्षा मानकषायको प्रथम संग्रहकृष्टि अथवा कारककी अपेक्षा मानकषायकी तृतीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य स्तोक है; उससे द्वितीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेष अधिक है, क्योंकि तीव्रअनुभागवाले प्रदेशपिण्ड से मन्दप्रनुभागवाला प्रदेश पिण्ड अधिक होता है । द्वितीय संग्रहकृष्टि से तृतीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है । विशेष के लिए प्रतिभाग पल्यका असंख्यातवांभाग है, यह प्रतिभाग स्वस्थानके लिए है अर्थात् मानकषायकी तीन संग्रहकृष्टियों में परस्पर विशेषका प्रमाण स्वस्थानविशेष है । इसी प्रकार माया व लोभकषाय में भी स्वस्थानविशेष जानना चाहिए । मानकषायकी तृतीयसंग्रहकृष्टि से क्रोध कषायकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिका द्रश्य विशेष अधिक है। यहां पर विशेषके लिए प्रतिभाग आवलिका असंख्यातवां भाग है। क्योंकि यहां परस्थानविशेष है कारण कि मान और क्रोध दोनों भिन्न-भिन्न कषाय है । क्रोष कषाय की तृतीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेष अधिक है; यहांविशेषका प्रतिभाग पल्यका असंख्यातवां भाग है । मायाकषायकी प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य क्रोधकषायकी तृतीयसंग्रहकृष्टि से विशेषअधिक है, यहां विशेषअधिक के लिए प्रतिभाग आवलिका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि परस्थान है । मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टि के द्रव्यसे माया कषायकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है। यहां विशेष अधिक के लिए प्रतिभाग पल्यका असंख्यांतवभाग है; क्योंकि स्वस्थान है । इससे मायाकषायकी तृतोय संग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है यहां भो स्वस्थान होने से विशेषअधिकके लिए प्रतिभाग पल्यका असंख्यातवांभाग है । मायाकषायकी तृतीय संग्रहकृष्टिसे लोभकषायकी प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है, यहां पर परस्थान होनेसे विशेषअधिक के लिए प्रतिभाग आवलिका असंख्यातबांभाग है, क्योंकि माया व लोभकषाय भिन्न-भिन्न कषाएं हैं। लोभकषायको प्रथमसंग्रहकृष्टि से लोभकी ही द्वितीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है और इससे तृतीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य विशेषअधिक है। यहां द्वितीय और तृतीय दोनों ही कृष्टियों में विशेषअधिक के लिए प्रतिभाग पल्यका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि स्वस्थान है । इस १. "विसेसो पलिदोबमस्स अखेज्जदिभाग पडिभागो" (क. पा. सुत्त पृ० ८ १२ सूत्र ७६२ )
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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