________________
पृष्ठ १९१
. १७४
२०३ २०४
विशेष
विषय
पष्ठ विषय दर्शनमोहोपणाम के समय पाया जाने वाला स्थिति
देश घातिकरण का कथन सत्त्व विशेष, भपूर्वकरण में होने वाले कार्य विशेष, .. प्रन्तरकरण का निरूपण अन्तरकरण प्रादि का कथन
१७२ मन्तरकरण की विधि का प्रतिपादन दर्शनमोह के संक्रम सम्बन्धी विशेष सहापोह १७४ अन्तरकरणकी निष्पत्ति के अनन्तर समय में द्वितीयोपमम सम्पग्दृष्टि के बिझुद्धि सम्बन्धी
होने वाली क्रिया विशेष एकान्तानुवृद्धि काल का प्रमाण
१७५ चारित्रमोहोपशम का क्रम द्वितीमोपशम सम्यग्दृष्टि के विशुद्धि में हानि-वृद्धि उक्त क्रम में सर्वप्रथम नपुसक वेद का उपपाम का कथन
विधान अपशमश्रेरिण में होने वाले प्रमुख कार्य
उदीरणा और उदयादिरूप न्यसम्बन्धी मल्पबहुत्व २.१ चारित्र मोहोपशम विधान में पाये जाने वाले
स्थिति काण्डकादि के प्रभाव का निर्देश माउ कार्य
स्थिति बन्धापसरण के प्रमाण का निर्देश प्रपूर्वकरण में स्थिति काण्डक का कथन
स्थिति बन्धापसरण सम्बन्धी विशेष कपन अनुभाग काण्डक प्रादि के प्रमाण का निर्देश
नपु'सयेयोपशामना के पश्चात् होने वाली स्त्रीअपूर्वकरण के प्रथम समय में गुणवेणि निर्जरा
वेदोपश्यामना का कथन
स्वीप समन काल में होने वाले कार्य - का प्ररूपण - अपूर्वकरण में बन्ध-उदम व्युच्छित्ति को प्राप्त
सात नौकषायोपशामना एवं क्रिपा विशेष का कपन = प्रकृतियाँ
पुरुषवेद के उपशमनकाल के मन्तिम समय में - अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय में होने वाले कार्यों
स्थिति बन्छ प्रमाण प्ररूपणा का निर्देश
पुरुषवेद की प्रथम स्थिति में दो प्रावलि शेष मनिवृत्तिकरण गुगा स्थान के प्रथम समय में कर्मों के स्थितिबन्ध-स्थितिसत्त्व के प्रमाण का कयन
रहने पर होने वाली क्रियान्तर १६३
छह नो कषाय के द्रव्य का पुरुष व में संक्रमित अनिवृत्तिकरण काल में स्थितिबन्धापसरण के क्रम
होने का निषेध
२०६ से स्थितिबन्धों के क्रमशः अल्प होने का कपन
परुष वेद सम्बन्धी नवकबन्ध के उपशम का विधान २०४ बमापसरण के विषय में विशेष कथन
प्रपगत वेद के प्रथम समय में स्थितिबन्धका कथन २१. स्थिसि धन्धों के क्रमकरणकाल में स्थिति बन्धों
अपमतवेदी के अन्य कार्य का प्रमाण
क्रोच द्रव्य के संक्रम का विशेष
२१२ उक्त प्रकरण में प्रल्पमहत्व प्ररूपणा सम्बन्धी
उपशमनावली के अन्तिम समय में होने वाली विशेषताएं
क्रिया विशेष
२१३ द्वितीय क्रम का निर्देश १८६ मानत्रय का उपशाम विधान
२१४ अन्य क्रम के निर्देशपूर्वक पुनरपि क्रम भेव
प्रत्यावलि में एक समय शेष रहने पर होने निर्देश
१८८ वाले कार्य ऋमकरण के उपसंहारपूर्वक उसके अन्त में होने माया की प्रथम स्थिति करने का निर्देश वाली प्रसंस्पात समय प्रबधों की उदोरणा का
मायात्रय के उपशम विधान का कथन
२१८ सकारण प्रतिपादन १९. | लोमत्रय के उपशम विधान का धन
२२.
२१६
२१७