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को मिला। आपने इस अवसर पर प्राहारादि का देकर तथा अन्य सभी प्रकार की सेवा सुधू षा करके अपने धर्मानुराग का परिचय दिया
जिमवाणी से प्रापका विशेष प्रेम होने से प्रापने पाश्यनाथ भवन में सरस्वती भवन बनवाया जो जिन. वारणी के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दे रहा है। प्राचार्यकल्प श्री १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज के चातुर्मास में श्री . लाइमलजी की प्रेरणा से पाप संवत् २०३० के चातुर्मास में पदमपुरा (बाड़ा) में २५ फुट ऊंची खडगासन प्रतिमा स्थापित कराने हेतु उसे मकराना में तयार करा रहे हैं। श्री . लाडमलजी के विशेष सहयोग से प्रापने चघिसार एवं क्षपणासार की टीकायें छपायो हैं जो स्वाध्याय प्रेमियों को धर्म लाभ दे रही हैं ।
प्रापने अपने जीवन में तीन विवाह किये और तीनों से ही सन्तानोत्पत्ति हुई । अापके ६ पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं। जिनके नाम क्रमशः श्री प्रकाघाचन्द, श्री घम्म कुमार, श्री सन्तकुमार व श्री पदमकुमार, श्री तृप्तिकुमार एवम् राजकुमार लड़के हैं और श्रीमती मुनादेवी, श्रीमती स्वर्णलता, श्रीमती मणिमाला एवम् श्रीमती अनिला ये पार पुत्रियां हैं। प्रापको धर्मपनि श्रीमती रतन देवी हैं जो धर्म में प्रापका पूर्ण सहयोग करती हैं। श्री १०८ श्री शिवसागरजी महाराज एवम् श्री १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज को सत्प्रेरणा से मि, प्रथम भादवा सुदी २ सं. २०१२ में प्रापने प. पू. प्राचार्य महाराज श्री १०८ श्री शान्ति सागरजी महाराज से दो प्रतिमायें धारण की जो सानन्द निभ रही हैं । प्रतिमामों का निर्वाह इनकी धर्मप्रेमी परिन के कारण ही समझना चाहिये जो इनको सभी प्रकार का सहयोग प्रदान करती है।
इस प्रकार श्री रामचन्द्रजो कोठधारी अपनी ८० वर्ष की अवस्था में अपने पुत्र एवं पौत्रों से सम्पन्न परिवार के साथ अपने धर्म ध्यान को साधते हुये सानन्द जीवन यापन कर रहे हैं । भापको गुरु भक्ति तथा जिनेन्द्र भक्ति सदा वृद्धिंगत हो यही हमारी हार्दिक कामना है । इति शुभम् ।
मिवेदक-गुलाबचन्द जैन, जैन दर्शनाचार्य एम.ए. जयपुर