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________________ जिस प्रकार प्रापको स्वाध्याय से प्रेम है उसी प्रकार स्वाध्यायी बंधु प्रों से भी प्रेम है। पाप मुनि संघों की भक्ति में भी सदा से रुचि लेते आये हैं। कोई भी त्यागी, व्रती, प्रतिमाधारी, साधु सन्त जब भी माते हैं माप उनकी सेवा सुन्न षा में निरत हो जाते हैं और उनकी तन मन धन से चर्या करते हैं।' ' - - - . -..- संवत् २००८ में श्री १०८ प्राचार्य श्री बीरसागर जी महाराज के संघ से १०८ श्री शिवसागरजी महाराज व श्री सुमतिसागर जी महाराज व ३ आर्यिका माताजी फुलेरा से चातुर्मास पहले पदमपुरी दर्शन कर जयपुर पधारे उसी अवसर पर आपके परम मित्र श्री गुलाबचन्दजी लोंग्या (बाद में मुनि दीक्षा लेकर पूज्य १. श्री जयसागरजी के नाम से प्रसिद्ध हुये) ने पापके चौड़ा रास्ता स्थित भवन में पाहारदान दिया था। सभी सात्रु एवं साध्वियों का निरतराप पाहार भी हुमा था इस अवसर पर पापके शुद्ध जल की प्रतिज्ञा नहीं थी प्रतः भाप कृत कारित प्राहार न देकर मात्र अनुमोदन स्वरूप पाहार ही दे सके थे तथा मन प्रौर वचन से ही अपना उपयोग लगा सके थे। जब संघ फुलेरा चातुर्मास हेतु गमन कर रहा था तब वह भाकरोटा में विश्राम हेतु ठहरा था तब माप भाकरोटा गये थे और महाराज श्री के समक्ष शुद्ध जल ग्रहण करके प्राहारदान देने की पात्रता प्राप्त की थी और फिर फुलेरा जाकर चातुर्मास में संघ को प्राहार दान देकर अपनी मनशा पूर्ण की थी। प्रापके हृदय में मूनि संघ की सेवा के उत्कट भाव जागृत हो चुके थे इसी कारण प्रापने जब संघ चातुर्मास पूर्ण कर जयपुर माया तब संघ को श्री ब्र. लाठमलजी की प्रेरणा से सम्मेद शिखर की यात्रा कराने के मापकै भाव उत्पन्न हुए पौर प्राचार्य महाराज से संघ को सम्मेद शिखर ले जाने की अनुमति चाही। महाराज श्री ने भी मापको समर्थ एवम् धर्मानुरागी थावक समझकर संघ को यात्रा कराने की अनुमति प्रदान करदी। इसी प्रवसर पर प्रापने चांदी के शाब्दिक व्यापार अर्थात सट्टा करने का त्याग कर दिया जिससे सभी ने प्रापकी सराहना की। __यात्रार्थ गये संघ में परमपूज्य प्राचार्य महाराज श्री १०८ श्री वीरसागरजी महाराज तो प्रमुख थे ही साथ में १०८ श्री आदिसागरजी महाराज, १५८ श्री शिवसागरजी महाराज, १०८ श्री सुमतिसागरजी महाराज, १.८ श्री धर्मसागरजी महाराज, १०५ श्री एलक पदमसागरजी महाराज तथा १०५ प्रायिका श्री वीरमती माताजी, १०५ श्री सुमतिमाताजी, १०५ श्री पार्श्वति माताजी, १०५ श्री इन्दुमति माताजी, १०५ श्री सिद्धमति माताजी, १०५ श्री शान्तिमति माताजी, १०५ आयिका श्री कुन्थुमति माताजी, १०५ क्षु. श्री मजितमति माताजी, १०५ शु. श्री अनन्तमति माताजी, १०५ शु. श्री गुणमति माताजी, श्री प्र. लाउमलजी, श्री ब्र. कजोडीमलजी, श्री ब्र. सूरजमलजी, श्री. चांदमलजी, श्री अ. राजमलजी (वर्तमान श्री १०८ बी मजित सागरजी महाराज) व १५-२० ब्रह्मचारिणी बाइयां आदि संघ में उपस्थित थे। इन सभी साधु साध्वियों का संच ब्रह्मचारी श्री लाडमलजी के विशेष सहयोग से रास्ते की सभी अतिशय क्षेत्रों को यात्रा करते हुये सानन्द सम्मेद शिखर पहुंचा । मापने इस अवसर पर दिल खोलकर अपने द्रव्य का सदुपयोग किया और संघ की सेवा का लाभ लिया । संदद १२, १३ पौर १४ में स्वानिया जयपुर में होने वाले चातुर्मास में भी मापका सक्रिय सहयोग संघ
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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