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सब्बिसार
[ गाथा १५२१-१५५.
का एक-एक समयमें उदयरूप होकर ) नष्ट होता है । तदनन्तर समय में उच्छिष्टावलिप्रमाण स्थिति अवशिष्ट रहनेपर उदीरणाका भी प्रभाव हुआ, केवलं अनुभागका अपवर्तन ( पूर्वमें कहे गए अपवर्तनसे यहां अपवर्तनका भिन्न लक्षण है ) अनुभागका अपवर्तन उदयरूप प्रथम समय से लेकर प्रतिसमय अनन्तगुणे क्रमसे प्रवर्तता है उससे ( अपवर्तन से ) प्रकृति- स्थिति श्रनुभाग- प्रदेशोंके सर्वथा नाशपूर्वक प्रतिसमय उच्छिष्टाबलि के एक-एक निषेकको गलाकर निर्जीण करता है और ग्रनन्तरसमय में ही क्षायिक सम्यग्दृष्टि होता है ।
आगे कहे जाने वाली अल्पबहुत्वके कथनकी प्रतिज्ञारूप गाथा कहते हैं बिदियकरणादिमादो कदकर णिज्जस्स पढमसममोति । रसखंडुक्कीरणकालादीणमप्पबहु
।। १५२ ।।
बोच्छं
अर्थ — द्वितीय करण ( पूर्वकरण ) के प्रथमसमय से लेकर कृतकृत्यवेदक के प्रथम समयपर्यन्त अनुभागकाण्डकोत्कीररण कालादिक के अल्पबहुत्वसम्बन्धी ३३ स्थानों का कथन आगे करेंगे ।
विशेषार्थ - दर्शन मोहनीयको क्षपणा करनेवाले जीवके अपूर्वकरणके प्रथमसमय से लेकर कृतकृत्यवेदक होनेके प्रथम समयतक इस ग्रन्तराल में जघन्य श्रीर उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकोत्कीरणकाल तथा स्थितिकाण्डकोत्कीरण कालों के जघन्य व उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक, स्थितिबन्ध, स्थिति सत्कर्मके जघन्य व उत्कृष्ट ग्राबाधाओं का तथा अन्य पदों के अल्पबहुत्वका कथन किया जावेगा ।
अब ११ गाथाओं के द्वारा अल्पबहुत्वके ३३ स्थानोंका कथन करते हैं— रस ठिदिखं डुक्कर श्रद्धा श्रवरं वरं च भवश्वरं । सम्वत्थोवं महियं संखेज्जगुणं विसेसदियं ॥ १५३ ॥ कदकरणसम्म स्त्रवणालियट अपुग्वद्ध संखगुणिदकमं । तत्तो गुणसे दिस्स य क्खेिश्रो साहियो होदि ॥ १५४ ॥ सम्म दुरिमे चरिमे वस्सस्सादिमे य ठिदिखंडा | mardinia य अडवस्लं संखगुणिदकमा ।। १५५ ॥