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________________ गाथा १५६-१६३ ] लब्धिसार [ १३७ सम्मे शसंखवस्सिय चरिमविदि खंड ओ असंखगुणो। मिस्से चरिमे खंडियमहियं अडवस्समेत्तेण ॥१५६॥ मिच्छे खबदे सम्मदुगाणं ताणं च मिच्छसत्तं हि । पढमंतिमठिदिखंडा असंखगुणिदा हु दुवाणे ॥१५७।। मिच्छंतिम ठिदिखंडो पल्लासंखेज्जभागमेत्तेण । हेट्रिम ठिदिप्पमाणेणभिहियो होदि णियमेण ॥१५८।। दूरावकिठ्ठिपढमं ठिदिखंडं संखसंगुणं तिगणं । दूरावकिट्ठिहेदूठिदिखंडं संखसंगुणियं ॥१५६॥ पलिदोवमसंतादो विदियो पल्लस्स हेदुगो जादु । अवरो अपुव्वपढमे ठिदिखंडो संखगुरिणदकमा ॥१६॥ पलिदोवमसंतादो पढमो ठिदिखंडओ दु संखगुणो।। पलिदोवमठिदिसंतं होदि विसेसाहियं तत्तो ॥१६१॥ बिदियकरणस्स पढमे ठिदिखंड विसेसयं तु तदियस्स। करणस्स पढमसमये दंसणमोहस्स ठिदिसंतं ॥१६२।। दसणमोहगाणं बंधो संतो य अवर वरगो य । संखेये गुणिदकमा तेत्तीसा एत्थ पदसंखा ॥१६३।। गाथार्थ व विशेषार्थ-सर्वप्रथम दर्शनमोहनीयका आठवर्ष प्रमाण स्थिति सत्कर्म रहने पर जो पहले का अनुभागकाण्डक है उसका उत्कीरण काल सबसे स्तोक है। ऊपर कहे जाने वाले सभी पदों से स्तोकतर है, किन्तु कृतकृत्यबेदक होनेके प्रथम में ज्ञानावरणादि शेष कोंका जो पहले का अनुभागकाण्डक, अनिवृत्तिकरणको अन्तिम अवस्था में उसका उत्कीरणकाल सबसे जघन्य (स्तोक) है, क्योंकि उससे आगे कृतकृत्यवेदककालके भीतर स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात ग्रादि क्रियाओंकी प्रवृत्ति नहीं होती। अतः सबसे उत्कृष्ट विशुद्धि निमित्तक यह सबसे जघन्य है, यह सिद्ध हुआ' । (१) १. ज. ध. पु. १३ पृ. ६१ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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