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________________ गाथा १५१ ] लग्धिसार [ १३५ कृतकृत्य जीवके कालके, भीतर जिसप्रकार गुरणश्रेणि निक्षेप प्रादि विशेष असम्भव हैं उसीप्रकार वहां असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीररणा भी असम्भव है ऐसी प्राशंका नहीं करना चाहिए, किन्तु यह कृतकृत्यजीव अपने कालके भीतर संक्लेशको प्राप्त हो या विशुद्धिको प्राप्त हो तो भी संक्लेश-विशुद्धिनिरपेक्ष असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण उदीरणा प्रतिसमय असंख्यातगुरिणत श्रेणिरूपसे कृतकृत्यके कालमें एकसमय अधिक एक पावलिकाल शेष रहने तक प्रवृत्त होती ही है, प्रतिघातको नहीं प्राप्त होती । यद्यपि असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा पूर्व-पूर्व समय सम्बन्धी उदीरणाद्रव्यसे असंख्यातगुणे क्रमयुक्त है तथापि अन्तिमकाण्डककी अन्तिमफालिके द्रव्यको गुणश्रेणिमायाममें दिया था उस गुणश्रेणिरूप उदयनिषकके द्रव्यसे यह उदीरणाद्रव्य असंख्यातवां भागमात्र ही है, क्योंकि सर्वद्रव्यमें अपकर्षण भागहारका भाग देकर उसमें से एकभागको पल्यके प्रसंख्यातवेंभागका भाग देने पर उसमें से एक भागप्रमाण यह उदीरणाद्रव्य है और जो गुणश्रेणि का निषेक उदयरूप है, उसका द्रव्य, सर्वद्रव्य में असंख्यात पल्य के प्रथम वर्गमूलका भाग देने पर एक भागमात्र इसलिये कृतकृत्यवेदकके प्रथमादि समयों में उदीरणाद्रव्य जो कि उस-उस समयमें उदयावलिके निषेकों में दिया जा रहा है वह उस-उस उदयावलिके निषेकों के सत्त्वद्रव्यसे असंख्यातगुणा हीन है । पुनः कृतकृत्यवेदक काल में एकसमय अधिक प्रावलिप्रमाण काल अबशेष रहनेपर पूर्व में अपकर्षित किये गए द्रव्यसे असंख्यातगुरणे द्रव्यको स्थिति के अन्तिम निषेक अर्थात् उदयावलिसे उपरितनवर्ती एक निषेक से अपकर्षित करके उसके नीचे एक समयकम श्रावलिके / भागप्रमाण निषेकोंको प्रतिस्थापनारूप रखकर उसके नीचे एक समयअधिक प्रावलीके त्रिभागमात्र निषेकोंमें द्रव्य देता है। वहां उस अपकर्षण किये हुए द्रव्य को पल्य के असंख्यातवें भाग से भाजितकर उसमें से एक भागप्रमाण द्रव्य तो उदय समयसे लेकर यथायोग्य असंख्यातसमय सम्बन्धी निषेकोंमें असंख्यातगुरणे क्रमसे देता है और अवशिष्ट बहुभागप्रमाण द्रव्यको प्रतिस्थापनाके अधस्तन समयको छोड़कर उसके नीचे शेष बचे यावलोके त्रिभागप्रमाण निषेकोंमें विशेष हीन क्रमसे निक्षिप्त करता है । यही उत्कृष्ट उदीरणा है, इससे अधिक उदीरणाका द्रव्य नहीं है। इसप्रकार अनुभागका प्रतिसमय अपवर्तन करके और कर्म परमाणुनोंकी उदीरणा करके यह कृतकृत्यवेदक : सम्यग्दृष्टि सम्यमत्वमोहनीयकी शेष रही अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिमें उच्छिष्टावलिको छोड़कर सर्व प्रकृति-स्थिति-अनुभाग-प्रदेशों के सर्वथा विनाश पूर्वक (एक-एक निषेक
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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