________________
वधम कोश
ठनन ठनन घंटा टनराम । मनन मनन भेरं मन नाइ ।। तरता तासाथ ताता) ताल । तल पशु लय गावे सुर ताल ।।३८॥ बीना बंधा मुरज झनकार । तंत वितंत घने सुषकार ।। नूपुर ध्वनि यकित सुवंश । जिन गण ककृत मनो कलहंस ।।३।। मंगल नाद करें सब कोई । सुर नर सब यह कौतिक जोह ॥ सुरभरि कलस लेहि एक साथि । क्षीर समुद्र तें हाथि हि हाथि ॥४०॥ नब सुरेश सौधर्म ईशान । प्रभु की करें अभियोक विधान || दही घीय मिष्टादिक जानि | प्रबहोरत रस संकल्पित मान ॥४॥ ज्यों पंचामृत परमत कहैं । ताही समेंलो गनिए गहैं । इंद्रनि कोनी इनकी धार । बिना क्षीर प्रभु के सिरमाल ॥४२॥ का मम बचन न माने कोइ । देषा प्रादि पुराण में जोइ । सहस प्रष्टोत्तर कलस विचित्र । ढाले जिनवर सीस पवित्र ॥४३॥ और प्रमुख शृ'मार माचार । इन्द्रनि कियो सकल निरि।। भए जग ज्येष्ठ बरिष्ठ अभिराम । ऋषवदेव राष्यो प्रमुनाम ॥४॥ फिरि जलाह सहित ३ फिरे । प्राय प्रजोध्या में अनुसरे ।। तहां कियो बहु विधि प्रानंद । माता को सौप्यो जिनचन्द ॥४५॥ धनपति को प्रभु सेवा राषि । इन्द्र सकल निज गृह प्राए भाषि ।। याही ते धनपति घनराय । प्रभु की सेव कर चितु लाइ ॥४६।।
वोहरा इह महिमा जिन जनम की, पहंत सुनत मघ मास । निज स्वरूप अनुभव करै, बहु विन गर्म निवास ॥४७
इति को जम्म कल्याणक वर्णन
ऋषभदेव जीवन
चौपई माभिराय मरदेव्या माझ् । धानंद बड्यो न प्रग समाइ । गुरुजन पुरुजन सघ गृह धाम । मंगल करें सकल नर वाम ॥१॥