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________________ कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज पंच शब्द बाजे मनवार । मोसिन झूल बंदनबार ।। रलरि सों चोक पुराइ । फिरि जिनको अभिषेक कराइ ।।२।। जग ब्योहार करण विस्तार । फेरि किए सब प्रमुखाचार ॥ बंदी जन बहु दीने दान । तिनही को नहीं सकौं बखान ।।३।। जुग की मादि भयौ भवतार । मादिनाथ पर्यो नाम विचार ॥ श्रमजल सब मल रहित सदीय । रुधिर वरण जैसो मौवीर ||४|| प्रथमसार संघनन स्वरूप । सहज सुगंध सुलक्ष अनूप ।। मधुर वचन बल अतुल न मान । मात्र विचित्री सब सों जानि ।।५।। ए दश प्रतिशय सहजोत्पन्न । तीर्थकर विन होइ न भन्न ॥ अमर पाइ बैंक्रिय बस फोर । कोऊ मराल ह्व कोकिल मोर ।।६।। विविध रूप ह प्रभु सों । बल विनोष करत दिन गर्भ ॥ देव पुनीत सकल गिर | गुर दियाई नि। २ ।। पहिरा प्रभु को परि हेत । निरषत तात मात सुष लेत॥ भौर मनूपम भोग विलास । भौगै प्रभु जून सुखरासि ।।८।। बीस लाष पूरब लौं जानि । कुमार काल मुक्त्यो भगवानि ।। पा दीयो नृप पद भार । नाभि नरेन्द्र परम उदार ।।६।। बैठे सिंघासन श्रीजगदीस । युगल धम्म निवारयो ईस ।। खेती बिनज लिखन चाकरी । परजा पालन को बिस्तरी ॥१०॥ पुत्री काई की मानिये । सुत काहू को तहा जानिये ।। कर विवाह लगन शुभ बार । इहि विधि बढ़त चल्यो संसार ॥११॥ सो मोपें वरण्यो क्यों जाई । हो मतिहीन वियनके माइ ।। भए प्रसन्न कल्पतरु भूमि । क्षुधा तृषा की बाढ़ी धूम ।।१२।। परजा सब दुख पीडित भई । नाभिराय के प्रागें गई । जो कुछ कहो सु कीजे नाथ । क्षुषा तृषा करि भए प्रनाथ ॥१३॥ पुद्गल जर्जरी भूत प्रतक्ष । बिनु पाहार न कोइ रक्ष ।।। नाभि नरेश सुनि यह बात । चिंता उपजी उर न समात ॥१४॥ चलि माए जहाँ त्रिमुक्न राय । दुख परजा को को सुनाय ।। श्री भगवंत विचारचौ ग्यांन । मृत भविष्यति भो वितमान ।।१५॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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