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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
सुमनस वन तें दीसें चंग ॥
वन विराजत बलयकार ।।२४।। जनम कल्याणक महोदव तहां ॥ पूरब दिसा प्रादि दे भेव ||२५|| और ग्रन्थ से सुनियो जांन ॥
जोजन सहन छत्तीस उत्तंग चोराण अधिक सो वारि चारि सिला पांडुक है जहां वन वन प्रति चैत्यालय देव कचे चोरे को परवान मंदिर प्रति प्रतिमा जिन तनी । अट्ठोत्तर सो संख्या गली १२६॥ सत्रह प्रविशति सदा । बने प्रकृत्रिम नास न कदा |
धनक पांच से बिच उत्तंग । तीन काल बंद मनरंग || २७ ॥ सकले पुरंदर हरषित भए । पांशुक वन विचित्र ले गये ।। तहां बिराज पांडुक शिला । जानौं श्रद्धचन्द्र की कला ||२८|| चोरी हैं जोजन पंचास । सो जोजन लांबो परगास
वसु जोजन की ऊंची गती । ललित मनोहर सोभा सनी ॥२६॥ तही मंत्र नभई तातिघासन छबि दई । भरी ताल कसाल जु छ । दप्परों चमर कलस ध्वज पत्र ॥३०॥ प्रथम घरें हैं मंगल अष्ट । रचे कलस तहां महा वरिष्ट ॥ वदन उदर श्री गहि परिणाम | एक च्यारि वसु जोजन जांन ॥ ३१४ तापर पराए जिनईश । पूरब मुष कमलासन ईस ॥
पूजा पाठ पढें सब इन्द्र । द्रव्य आठ साजें प्रति इन्द्र ||३२|| जलगंधाक्षतपुष्प अनूप | नेवज प्रचुर दीप परु धूप ॥
फल जुत माठ द्रव्य परकार 1 पूजा करें भक्ति उरधार ॥३३॥ करें भारती पढ जयमाल | गावें मंगल विविध रसाल ॥ बाजे ताल मृदंग जु बीन । दुदुभि प्रमुख घुरि ध्वति छीन ॥ ३४ ॥ ॥ नति सुर गंध की नारि । हावभाव विभ्रम रस भारि ॥ सची सकल मनोहर नैंन । चन्द्रवदन विस्रत सुख छैन ||३५|| भंग मोरि भवरी जब लेहि । देसी विषँ परम सुष देहि || धिर्गादि विगदि तत थेई ताल | भिमक भिमक झालरी कमाल ||३६|| श्रिगदि थिगदि मुष की यथकार | दिगदि दिगदि संगीत सुतार ॥
कि द्रमकि बाजें दुरमुरी । घुमिकि घुमिकि करि लिंकन करी ।। ३७।०