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धवन कोश
सुनि लक्ष्मी दरशन को भाव । बहुत सी कर सहान ।। जनमतें इन्तु मेरु ले जात । कर कल्याणक पन विपराय ||२३|| पुहप दाम को फल जु अनूप । कीरति उज्वल काम सरूप ॥ जस चल्ली पसरी त्रियलोक । हरै सफल प्राणी का शोक ॥२४॥ हिमकर देषण को परताप । तू सब मेटें जम माताप ।। सूरज फल प्रतापी जोर । मेटें पाप तिमिर को सोर ॥२५॥ क्रीड़ा करत जु देखें मीन । तू बसतु सुषगर परबीन ।। पूरण घट को यह विचार । बिना पढ़ें विद्या सु भण्डार ॥२६॥ सरवर कुलित तनों फल एह । शुभ लक्षण सब सुत की देह ।। संख्या सहस पाठ की सुनों । तिने सुमिरै सब पापनि हनों ॥२७॥ देष्यौ सागर उठत तरंग । केवलज्ञानी पुत्र प्रमंग ।। लोकालोक तनों विस्तार 1 यथा जुगति प्रकटे संसार ॥२८॥ सिंघासन फल एसो जानि । लछिन अनेक मुक्त निर्वान || सुर विमान ते राज समाज । रूप सोमाग बहुत गजराज ॥२९॥ नागरूप जनमत त्रिय ज्ञान । तीन लोक के नाथ बलांन । रलरासि फल उत्तम जोइ 1 सुत श्रुत गुरण के सागर होछ ।॥३०॥ प्रनु जित अग्नितने परभाव । ध्यान प्रमनि बसु कर्म प्रभाव । कलुष दुष्ट संपूरण जारि । तू बसे मुक्ति रमणी भरतार ।। ३१६॥ फल सुनि परम आनंदित मई । धम्मं बुद्धि अभिक ईसई ।। सघासिद्धि से चले जगदीस । भुक्ति प्राव सागर तेतीस ॥३२॥ • कारी द्वेज माषाव की मास । मरुदे गर्म कियो जु निवास ।। गर्भ कल्याण पूजो देव । इन्द्राविक सब करइ सेव ॥३३॥ कर कुमारी चप्पल सेव । सकल दुहिले पूरहूँ हेव ।। है अनादि की ऐसी रीति । सेवा करें सबें घर प्रीति ॥३४॥ निसवासर सब सुख सों जाइ। नव महीने जब पूरे पाय ।। जलनी हदय परम मानन्द । कब ब हैं सुत त्रिभुवन पन्द । ३५॥