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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
दोहरा
महिमा गर्भ कल्याणक की, सुनो भव्य घरि हेत । मपहारी सुख करणहें , पहुंचायें शिवखेत ॥३६।।
इति श्री गर्भकल्याणक वर्णन मन्म कल्याणक वर्णन
चौपई अब सुनि जनम कल्याणक रीति । करें इन्द्र सम्म मन धरि प्रीति ।। मंत्र मुवी नौमी के दिना । उत्तराषाढ़ जनम भागिना ।।१।। भुवि अवतरे जगत के नाय । मत्ति अति अवधि विराजे साथ । कङ्ग कष्ट महि मासे होश । सुष साता सौं प्रसव सोइ ॥२॥ तब इन्द्रनि जान्यौ बल शान | पहमि प्रौतरे श्री भगवान ।। हर्षित लोक तिनि सुनिए लोक । दूरि बहाये संसय सोक ॥३॥ कल्पबासी घंटा ध्वनि करै । और अनाहद रव ऊचरै ।। ज्योतिकी संषनाद पूरियो । करि उछाह अशुभ बूरियो ।।४।। भवनवा सि गृह मयो भानंद । सिंघ रूप गजै सुर वृन्द ।। परह बजायो व्यंतर देव । पहुलास करि हैं प्रभु सेव III भवनवासि चालीस अनूप । व्यंतर दोइतीस शूचि रूप 11 कल्पवासी चौबीस महंत । मावे पूजन श्री भगवंत ॥६॥ रवि शशि नर तिरघंघ जु चारि । ए सब मिले शप्त इन्द्र विचार ॥ जान्यौ जनम लीयो जिनराज । गज ऐरावत लाए साज ||७|| पब वरणों वा गज शृंगार | जो गुरु कही जिनागम सार ॥ एक लाख जोजन गज सोइ । ताके मुख इफशत अवलोय ।।८।। बदन बदन पर पाठ जु दत्त । रदन रदन इकसर ठाठ ।। सर प्रति कमलनि सो पच्चीस । एक लाख कमलनि सब दीस III