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कविवर बनातीनार, बुलाकीदाम एवं हेमराज तब धन पनि प्राग नवमाम । घर घर बरपाई नग रासि ।। प्राई पाठ जु देवी तछ । प्राषुक उमष लाई सबै ||| अनमी की सेवा प्राचरै । देाष गर्म षोषना करें 11 देह जनित के जिते विकार । पूरी किय नहीं रहे महार ॥६॥ जिन माता सोवत सुख चैन । सुपने देने पश्चिम रैनि ।। गज देध्यो सुर गज सम तोलि । धवल धुरधर रूप प्रमोल ।।१०।। केशरी सिंघ महा बलवान । कमला रूप मनोहर जान ।। सुन्दर - वि कशि करास बंगनीन सुभम पल आंत रंग ।।११॥ पूरण सजल व हाटक रूप । कमल कुलित सर सुभग अनूप ।। सिंहासन अमुपम अविकार । देखें जानी स्वपन विचार ॥ प्रमर विमान महा रमनीक । फणिपति सुभग रु सुन्दर नीक ।। विमल प्रचुर रत्न की रासि । जरत अग्नि उत्तम परगास ॥ ए षोडश सुपर्ने प्रवलाइ । दर वेदन भव जाग्रत दोइ ।।१४॥ जिनमाता पोरष देषई । पकी की द्वादश पेषई ।। नारायण की देधै पाठ । बैदराम की इह श्रत पाठ ।।१५।। उत्तम जलसे मुख प्रछाल । पहिरे नौतन बसन रसाल ॥ मय सत साज सिंगार अनूप । चलि माई जहां बैठे भूप ।।१६।। भक्ति जुक्ति सौ सीसू नवाई । राजा की दिग बैठी जाइ ।। स्वपन वृत्तांत सकल उच्चर्यो । फल सुनवे को चित्त मनुसर्यो ।।१७।। सुनत सुप हिय अधिक हलास । प्रवधि ग्यान बल फल परगास ॥ माभिराय फल कयो विचारि ।तुम सुत लं हों त्रिभूवन तार ।।१८।। प्रथम तीर्थकर जनम मही । तुम्हरी क्ष जानियो सही ।। प्रथक प्रथक स्वपने गुणमाल । वनि सुनाऊ सुनी उहो नारि ।।१६।। पहली वेयौ गज मय मंत । तुम सुत हं हैं श्री अरहंत ॥ वीर्य बलादिक ग्यान अनंत । वंदे देवी देव अन्नत ॥२०॥ धवल रूप को सुनि फल' सार । जग जेष्टी जग गुरु सिरदार ।। इन्द्र नरेन्द्र खगेसर देव । ज्योतिक भ्यंतर करें पद सेव ॥२॥ सिंह प्रताप महा बलबीर । भयो न ह हैं कोऊ न धीर ।। अनन्त मर्यादा को बल तास । अनन्त ज्ञान में कर विलास ॥२२॥