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कविवर बुलासीचन्द, बलाकीदास एवं हेमराज
भने पर करनी पर्ने । सुमित माह कुमति सब नसें ॥१॥ मुष जिन उद्भव मंगल रुप । कवि जननी और परम अनूप । करि भंजुली कर शीशु नवाइ । करों बुद्धि को मोहि पसाइ ।।२।। जनम जरा मरण विहंउ । सोभित छह दर्धान तुड।। रुनु मुरण पग नेवर मरणकार । अविरल शब्द तनी दातार ।।३।।
इति भंगलापरणं
मानुषोत्तर वर्णन
नमिता चरण सकल दुष दहाँ । जे मथाल उतपति सब कहाँ । प्रषो मषि है लोकाकाश । पुस्ताकार बघाने तास ।।१।। लोकमध्य है उभी वश नालि । चौदह राजू उचित विसाल ॥ चरण स्थल जुग बनें निगोद । निस्य इतर जिन वन विनोद ॥२॥ अनंतानंत जीव की पोनि । कबहूँ ताकी होइ न हानि ।। सहा भावतमी न मरजाद। पंच जीव यह रीति प्रमादि ।।३।। जितने जीव मुक्ति नित जाहि। तितने इयति निषरांहि ॥ घटे नहीं निगोद की राशि ! बन सिद्ध अनंत बिलास ॥ मधोलोक तनौं परमान । कटिं प्रदेश तें नीयो बानि ।। ऊपर ऊदर लिलाट परनंत । ऊवं लोक की हद्द गणंत 10 मध्यलोक पद-स्थल गनी। दीप समुद्र संख्या बिनु भणों। पडयो क्षेत्र नाभि के ठाम ! मानुषोत्र हैं ताको नाम ।।६।। मानुषोत्र मरजादा जामि । द्वीप अढाई सागर मानि ।। पहिस्सै जंबूदीप विचार । जोजन साख एक विस्तार ||७| तीनि लाष हैं बलयाकार । मध्य सुदर्शस मेरु पहार।। जोजन लाख तुग है सोइ । जोजन सहस भूमि में होइ ॥८॥ ताके पूरब पश्चिम भागणों । क्षेत्र तीस हूँ अविचल भणों ।। भरत ऐरावत हूँ ए जानि । उत्तर दक्षिण परे बखान ।। ए सब मिलि भए तीस रु चारि ! तहाँ हूँ शशि हूँ रवि को उजियार ।। द्वीप समूह पर मार्गे जानि । दुगुण दुगुण इनको परमान ॥१०॥