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वचन कोश
नाम और जु परबत पड़े । पदम बह ऊपरि तिनि पडे । श्री घृत प्रादि जुदं न्यारारि । तिनको तहाँ सदध निवास ।।११।। तिनत नदी पतुईन चली । अविचल तहा समुद्र हे मिली ॥ गंगा सिंधु रोहिता नाम । दोहित भी हरिता अभिराम ।।१२।। हरिकासा सीता ए दोड । सीतोदा नारी प्रवसोइ ॥ नरकांता प्रो सुधर नामनी । रुप्यकुला रक्ता फुनि सुनि ।।१।। रक्तोदा चौदह ए नाम । स्वच्छोदक सिनमें अभिराम ।। महापालि साधि धीर । जोजन प्लस हूँ बहन गंभीर ।।१४।। वारी जलनिधि बहू जंतुनि भर्यो 1 ठोर और बड़चानल घर्यो ।। मिष्टोदक पीवै सब सोइ । सदघि मघि नहि रंच समोइ ।। १५॥ द्वीप पातुकी ताचोफेरि । जोजन लाल चारि में मेर ।। विजयाचल जानों गिरि नाम । गिरि प्रक्ति भई ऐरावत ठाम ||१६|| सलिता गिरि प्रति दस अरु चारि । पूर्व रीति है लेहु विचारि ।। ता चा फेर समुद्र को नाम । कालोदधि मीठो जल ठाम ।।१६।। पाठ लाष जोजन विस्तार । वेठमी वन बेदि अपार ।। ता पाषल पुष्कर पर दीप । जोजन सोलह लान समीप ।।१८।। जोजन आठ लास्त्र विस्तार । पुष्कराद्ध ता माहि विचार ।। पूरब पश्चिम गिरि अभिराम । मंदर विद्युत माली नाम ।।१६।। मेरु संबंध हूँ जे गणों । भरथ ऐरावत चारिजु भणों ।। पूर्व विदेह साठि भरु च्यारि । तिनकौं प्रलय न कहूं लगार ।।२०।। नदी चतुईश गिरि प्रति जांनि । सत्तरि पोर एक सो मानि ॥ इहां लों मानुषोत्तर पिहचानि । देब बिनां को प्रागें न जानि ।।२१।।
यह पनादि की तिथि कहवाइ ...... ... .... । अब सब क्षेत्रनि क्रौं परमांन । सत्तरि और एक सौ जांनि ॥ तामें दश ऐरावत भरण । सौ पौर साठि विदेह समर्थ ।।१२।।