________________
रचन कोश
दश गणधर जानी राजैत । जिन प्रतिबोघे जीव महंत ।। ठादे जोग भयो निर्धारण । मिरि सम्मेद शिखर शुभ यांना
बोहा कृष्ण द्वेज बैशाख की, गर्भवास अवतार । पूस बदि एकादशी, जनमरु तप अधिकार ॥६॥ चौथि जुकारी पत की, प्रगट्यौ पंधम शान । सावन सुदि सात दिना, मिनजू को निर्वान ॥७:।
इति पाश्वनाम चरनं
२७. महावीर स्तवन
योहा वर्षे मठासो के गए, महावीर जिनराय । कुडलपर मरी जनम. म जुमिस्ता ||
चौपई पिता सिधारथ लॉछण सिंध । साय हाथ की काय उतंग ॥ प्रभु की प्राव बहसरि वर्ष । गणधर ग्यारं हैं परतव्य ॥२॥ उग्रवंश देही बुति हेम । तेतीस जनम 2 बज्यो येम ।। योग घरची तक राजकुमार । सघन वृष्म शालिर को सार || कुमार से कुलपुर धनी । दूपपरी साके पर बनी ।। केवल उपज्यो सझिी बेर । समोसपण जोजन के फेर ॥४॥ पावापुरी घरचौ दिन ध्यान 1 ठाडे जोग भए निमि ॥ भाषा सुदि छठि गर्भ निवास । जनम चंस सुदि सरस तास ||५|| अगहन चदि प्यारसि तप गानि । बंशाख अदि दशमी को मान ।। कातिग बदि मावस पुनीत । सिर भए सब कम्म मितीत ॥६॥
इति श्री पर्वमान पर्सन सरस्वती वन्दना
धौपाई तिन सुमिर पारें पर बसें । सारद तनी नमति मनुसरों ।।