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भविघर गुमासी नन्द, ताकीदास एवं हेमराज
१७. कुयनाथ स्तवन
सोरठा सहस कोरि गए वर्ष, रत्न बृष्टि गजपुर भई । कुंथुनाथ परतष्य, सूरराय के गृहभए ॥१॥
चौपई श्री सरणी माता जिन जानि । मजारुप लांछण पहिचानि ।। सहस पच्यानवे वर्ष की प्राव । धनक तीस करि काय उन्नाव ॥२॥ हेमवरण कुरुवंश प्रधान । गणधर पांच तीस जुस जान ।। तीनि भवांतर ते हिम चेत । राज रमाग कियो तप सों हेत ॥३॥ उत्सम तरूवर तिलक बषांन । तातर प्रमु कियो लौंच विधान || मंदिरपुर वरदत्त नरेश । ताके शीर घट्यो जु जिनेश ।।४।। केवल लखौ समें दिन अंत । ठाढे जोग भए प्ररहत ।। समोसरण है जोजन पारि । गिरि सम्मेद तें मुक्ति पार ||१॥
सावन वदि दधामी प्रकट, गर्भवास प्रभुलीन । बैशाष सुधि दसमी जनम, जानो भव्य प्रवीन ।।६।। सुदि वैशाख की प्रतिपदा, तप अरू ज्ञान समाज । तीज उजेरि चैत की, शिव पहुंचे जिनराय ॥७॥
इति कुपनाय वर्णन
१६. परनाथ स्तवन
सोरठा वरष हजार करोरि, अनुकर्म जब घिर गए । पर जु नाथ अवतारि, गजपुर नयर सनाय किए ॥१॥
घोपई पिता सुदर्शन देवी माय । लांछाप नंदावती दिवाइ । सहस चउरासी वृष जीवंत । कुरूक्षी हाउ' सब कैत ।।२।। धनक तीस उत्तंग शरीर । तीनि तीस गणधर बलवीर ।। तीन जनम ते मापा सध्यो । राज समाज सकल तही नष्यो ॥३॥