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________________ वचन कोश ठाके जोग जिनेश्वर भए । गिरि सम्मेद पंचम गति गए ॥ शुदि पांच वैशाष जुमास । श्री जिनवर जू गर्म निवास ॥ ६ ॥ गाव सुदि तेरसि जब यई । जनम अनंद ज्ञान रिद्धि भई ॥ जेठ उज्यारी बोधि वषांन । भए तपोषन श्रीभगवान ॥७ पूस सुदि पून्यम के दिना । मुक्ति महोच्छच श्रानंद घन । अंतर पावपल्लि उनमानि । सहस करोरि वरष घटि जांनि ||८| इति धर्मनाथ वरमं १६. शांतिनाथ स्तवन वोहरा इतनी काल गएं भयो, पुन्यतनी बलसार । षोडशमों जिनराज गरिण, शांतिनाथ अवतार || प गजपूर विश्वसेन महिईश। ऐरादेवी माता जगदीस || मृग लांधण लब वरण प्रमान । कनकबर कुरुवंशी जान ||२|| षट और तीस जु गएर संग || काय घनक चालीस उत्तंग द्वादश भवतें समिकत वांन राज विभूति तजी छिरामांन ॥ १३ ॥ त्रिक रूक्षत तप जोइ । बीर गह्यौ बीतें दिन दोइ ॥ सुमनसपुर राजा प्रिय मित्र भयो दानपति परम पवित्र || १४ | केवल भयो सांझ के समें। गिंर सम्मेद ठाउँ शिव र । समोखरण ले प्राये देव । जोजन चारि श्रम करि से I ||१५|| दोहा मादव बंदि जु सप्तमी, लमो गर्भ अवतार | कारी चौदशि जेठ की, जनम तपोधन धार ||६|| जेठ यदि तेरसि दिवश, केवल ज्ञान कल्याण ॥ पूस उजेरी दर्शाम को, पायो पद निर्वाण ॥७॥ इति शान्तिदाथ वनं
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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