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________________ बधन कोश समाज में काष्ठ की मूत्तियां बनाने का एक समय बहुत जोर हो गया था । 'काष्ठासंधी भट्टारफ इस दिशा में बहुत प्रयत्नशील रहते थे लेकिन भट्टारक उमास्वामी को काष्ठ प्रतिमा का निर्माण पता नहीं लगा इसलिये उन्होंने इसका विरोध किया और लोहाचार्य से जब भेंट हुई तब उन्होंने निम्न शब्दों में अपना मत व्यक्त किया वही सोख हमरे करि धरो, काठ तनी प्रप्तिमा भति करो। पग्नि जरावे घन मिह दहें, अंग भंग नहि जिन गुन लहें ॥ जल गरें चंचल तमु जांन, सेप किये सदोष पह आनि ॥३॥ उमास्वामी की बात तो मान ली गयी लेकिन काष्ठा संघ ने मूल संघ से में अपना पृथक अस्तित्व बना लिया । इस प्रकार कवि ने काष्ठासंघ की उत्पत्ति का ऐतिहासिक वन दिया है लेकिन कानवले भकारक प्राचा लोभकोत्ति ने ने जो काष्ठासंप्ट की पट्टावली दी है उस से इसका मेल नहीं खाता । सोम कीति ने तो प्रथम प्राचार्य का नाम अहंदवल्लभसूरि दिया है जब बुला स्त्रीचन्द ने लोहाचार्य को काष्ठासंघ का संस्थापक माना है। लेकिन वचनकोश में भूल संघ एवं काण्डा. संघ को एक चने की दो दाल के समान माना है।' वचन कोश में भारत में यवनोत्पत्ति का वर्णन किया है उसके अनुसार ये सब हिंसा में विश्वास करने वाले तथा शोच एवं शील के विपरीत प्राचरण करने वाले थे । मंत्र शास्त्र घुलाखीचन्द ने कितने ही मंत्रों की साधना का भी अच्छा वर्णन दिया है। कवि के युग में अथवा प्रागरा, मादि स्थानों में मंत्रों पर अधिक विश्वास था । स्वयं कवि कभी मंत्र शास्त्र अच्छे शाता रहे होंगे ऐसा भी प्राभास होता है नहीं तो अधिकांश काम्यों में मंत्रों का उल्लेख तक नहीं होता। इसके अतिरिक्त सभी मंत्र विद्या, मादि के प्रदाता एवं कल्याणकारक मन्त्र हैं। देखिये पाचार्य सोमकिसि एवं ब्रह्म यशोधर-रा० कासलीवाल-पृष्ठ संख्या २४ । २. एक बना कोण्ये वारि, त्यो ए दोऊ संघ विचार ।। ३. हिंसा सनो तहां अषिकार, सौच शील महीं दीखें सार ।।७।।१४३३॥
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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