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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
जगत् को एक महत्त्वपूर्ण कृति मेंट की है । जिसमें सिद्धान्त, इतिहास, समाज एवं काध्य गरिमा के शं: होर है । कोश नाम इस प्रकार की बहुत कम कृतियो उपलब्ध होती हैं ।
अन्य एवं प्रलकार
__ वचनकोया का मुख्य छन्द चौपाई छन्द है लेकिन दोहरा एवं सोरठा छन्दों का भी प्रयोग किया गया है । १८वीं शताब्दि में दोहा एवं चौपई छन्द अधिकांश काव्यों का छन्द मा तथा पाटक गण भी इन्हीं छन्दों के काव्यों को रुचि से पढ़ते थे।
गद्य का उपयोग
कधि ने कोषा में कुछ स्थानों पर पद्य के स्थान पर गद्य का प्रयोग किया है । व्रतों के वर्णन में गद्य का प्रयोगप्रप्रमुख रुप से हुआ है । इसे हम व्रज भाषा का गन कह सकते हैं । गद्य भाग के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार है
(१) जिनमुखावलोकन व्रत प्रासोज सुदी ४, भादवा बदि १ ते प्रारम्भ वर्ष १ ता यो फरै ताकी रीति श्री परमेश्वर जी की प्रतिमा देख्यां बिना पारणों न करे जो उदय वसि काहू दिन पहिले और कछू दिष्ट परें ता दिन उपवास करें ।
इति जिनावलोकन मुख व्रत । पृष्ठ संख्या ३६ ।
(२) मह प्रकार जब प्रात्मा बाहिर चिह्ननि करि और अंतरंग चिह्ननि करि जया जात रुप का घारतु हो हैं । ताले कुटुम्ब लोक पूछन प्रादि क्रिया तें ले करि प्रागै मुनि पद के मंग के कारण पर द्रव्यनि के संबंध है तातें पर के सम्बन्ध निषेध हैं इह कचन कर है।
पृष्ठ संख्या ४४। अन्य ग्रन्थों का उद्धरणा
कवि ने प्रत पालन के प्रसंग में नाटक समयसार, प्रवधनसार के अतिरिक्त अनेतर ग्रन्थों से भी श्लोक उद्धत किये हैं। इससे कवि की शिक्षा, दीक्षा एवं ज्ञान गम्भीरता के बारे में प्रकाश पड़ता है।